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असुविधा के लिए खेद है, भारत में हर साल गलत इलाज के कारण लाखों मौतें

विश्व में हर जगह डॉक्टरों के पेशे को भगवान का दर्जा देकर सम्मानित किया जाता है क्योंकि लोंगो का मानना है कि अगर भगवान के बाद अगर कोई दूसरा व्यक्ति इंसान को बचा सकता है तो वो केवल और केवल डॉक्टरर्स (चिकित्सकों) की ही टीम है। मगर ऐसे में बीते कई शोध बताते है कि केवल भारत में ही  लाखों लोगों की मौत गलत उपचार के कारण होती है। जोकि चिकित्सकों की जमात पर एक गंभीर  सवालिया निशान खड़ा करती है।

आज से कुछ साल पहले 2017 में अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में किए गए एक शोध में भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर कई गंभीर सवाल उठे, शोध के आंकड़े बताते है कि इलाज में लापरवाही के कारण भारत में हर साल तकरीबन 50 लाख तक मौतें होती है। इसके साथ ही भारत में हुए कई शोध बताते है कि डॉक्टरों की हैंड राईटिंग(लिखावत) समझ न आने की स्थिती में दवाईकर्मी रोगियों को अक्सर गलत दवाई व सूचना दे देते है जिससें मरीज के स्वाथ्य पर कई गंभीर दुष्परिणाम भी देखने को मिलते है और कई बार मृत्यु तक हो जाती है। इसके बाद मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया(MCI) ने गाइलाइन जारी कर डॉक्टरर्स को हिदायत दी की प्रिस्क्रिप्शन लिखते समय कैपिटल लेटर्स का प्रयोग करें। बेहतर होगा कि टाईप करके लिखें, जिसमें आम व्यक्ति भी आसानी से समझ पाएगा। मगर इस फैसले पर कितना अमल हो रहा है यह कहना मुश्किल है।

खासकर ग्रामीण इलाकों में यह समस्या और ज्यादा जटिल  हो जाती है एक तो तकनीकी उपकरणों व इंटरनेट के अभाव  के कारण अकसर चिकित्सक अपनी हैंड राईटिंग में ही प्रिस्क्रिप्शन देने को मजबूर होते है। इसके साथ ग्रामीण क्षेत्रों में लोग इतने शिक्षित नही होते, जिस कारण कई जगह झोला-छाप डॉक्टर पैसे कमाने की लालच में लोगों को गलत दवाई देकर उनकी जान को जोखिम में डालते है। झोलाछाप डॉक्टरो के अलावा मेडिकल स्टॉफ की लापरवाही के कारण भी लोगों की जान खतरे में पड़ जाती है।

ऐसी ही कुछ समय पहले चेन्नई की एक घटना है जहां एक महिला फुटबॉलर जिसके दाहिने घुटने का लिगामेंट फट जाने के कारण उसने चेन्नई के एक सरकारी अस्पाताल में सर्जरी कराई, सर्जरी के बाद उसने पैर में सूजन और दर्द की शिकायत की। उसके बाद महिला को पेन किलर दिया गया, मगर जब हालत और बिगड़ गई तो उसे चेन्नई के राजीव गांधी सरकारी अस्पाताल लाया गया मगर महिला फुटबॉलर को बचाया न जा सका।

इलाज की लापरवाही की जांच में पता चला कि सर्जरी के बाद खून रोकने के लिए लगाया गया कम्प्रेशन बैंड बहुत टाइट था जिससे ब्लड सर्कुलेशन ठीक से नहीं हो पाया। जिस कारण महिला की मौत हो गई। ऐसे ही बहुत से उदाहरण आए दिन देखने को मिलते रहते है, जोकि मेडिकल नेग्लिजेंस यानी उपचार में लापरवाही के कारण हुए। कोरोना काल के दौरान भी कई ग्रामीण इलाकों से यही लापरवाही देखने को मिली। जिसमें देखा गया कही तो टीके के नाम पर रेबीज का टीका लगा दिया गया हालांकि यह मेडिकल नेग्लिजेंस जरूरी नहीं कि झोलाछाप डॉक्टर के कारण ही हो, यह विशेषज्ञ स्टॉफ के कारण की गई लापरवाही के कारण भी हो सकता है।

इस आलेख में हमनें स्वास्थय की सिर्फ कुछ ही समस्याओं पर बात की है ऐसी बहुत सी समस्याएं आज भी विद्यमान है जिस पर हमें विस्तृत चर्चा की जरूरत है इसके साथ ही सरकार तमाम स्तर पर स्वास्थय व्यवस्था पर नजर बनाकर रखें और यह तब तक दुरस्त नहीं हो सकता जब लोग जागरूक नहीं होगे।  

-मोहम्मद हमज़ा ( अमर भारती समूह)  

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