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कोरोना के नए स्वरूप से बचाव के लिए घर में ही मनाएं होली: ज्योतिषाचार्य

होली की राख जैसे होते हैं विभिन्न रंगों के पाउडर

नई दिल्ली। जैसा कि आप सभी जानते सर्दियों के समाप्त होने के रूप में मनाए जाने का एक शानदार तरीका वह भी विभिन्न रंगों के साथ और सभी के साथ एक नए युग के आगाज के लिए मनाए जाने वाला हिन्दू सनातन धर्म और विभिन्न धर्मों में अलग-अलग पंरपराओं के तहत मनाए जाने वाला यह खास त्योहार होली जो विविधता में एकता को जगाता है। लेकिन इस वर्ष वैश्विक कोरोना महामारी की तेजी से बढ़ती दूसरी लहर के चलते परिवार के सदस्यों के बीच ही होली पर्व का आनंद लिया जाए तो कोरोना संक्रमण से सुरक्षित रह पाना संभव है। हालांकि होली एक सार्वजनिक पर्व है जो सामाजिक नजदीकियां बढ़ाता है। लेकिन इस वर्ष सामाजिक दूरी का ध्यान रखते हुए त्योहार मनाएं। सतर्कता ही समाधान है, अत: सतर्क रहें, सुरक्षित रहें।

प्रकृति से मेल खाने वाले रंगों के साथ मनाए जाने वाले इस त्योहार, होली को लेकर न्यूज पोर्ट से मुखातिब होते हुए गांव थनवास के ज्योतिषाचार्य पण्डित दिनेश कुमार शास्त्री ने बताया कि होली भारत के सबसे पुराने पर्वों में से एक है। होली का त्योहार समाज में फैले हिंसात्मक, नकारात्मक विचारों को बदल एक नया सकारात्मक माहौल उत्पन्न करता है। यह हर्षोल्लास तथा भाईचारे का त्योहार है। यह लोक पर्व होने के साथ ही अच्छाई की बुराई पर जीत है। होली के दौरान विविधता में एकता को देखा जाता है।

ज्योतिषाचार्य दिनेश कुमार शास्त्री ने होली की पौराणिक कथा का जिक्र करते हुए कहा कि प्राचीन काल में हिरण्याकश्यप नाम का एक अत्यंत बलशाली एवं घमंडी राक्षस स्वयं को ईश्वर मानने लगा था। हिरणाकश्यप ने अपने राज्य में ईश्वर का नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी। हिरणाकश्यप का पुत्र प्रहलाद ईश्वर का परम भक्त था। प्रहलाद की ईश्वर भक्ति से क्रुद्ध होकर हिरणाकश्यप ने उसे अनेक कठोर यातनाएं व दंड दिए किन्तु भक्त प्रहलाद ने ईश्वर की भक्ति का मार्ग नहीं छोड़ा हिरणाकश्यप की बहन होलिका को अग्नि कवचवस्त्र एवं अग्नि स्वयंरक्षक वरदान प्राप्त था। वह अग्नि में भस्म नहीं हो सकती थी। हिरणाकश्यप के आदेशानुसार होलिका प्रलाद को मारने के उद्देश्य से उसे अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई। किन्तु अग्नि में बैठने पर होलिका स्वयं जल गई और भक्त प्रहलाद बच गए। तब से होलिका दहन की शुरूआत हुई जो आज तक हिन्दू परम्परा में चली आ रही है। ज्योतिषाचार्य पंडित शास्त्री ने यह भी बताया कि होलिकादहन के बाद होलिका की मृत्यु हो गई और लोगों ने अगले दिन दहन की भस्म (राख) माथे पर लगाते थे। आज भी इसी परंपरा का पालन किया जा रहा है। आज इस्तेमाल किया जाने वाला विभिन्न रंगों का पाउडर राख के समान होता है।

ज्योतिषाचार्य ने होलिका पूजन व होलिका दहन के शुभ मूहुर्त की जानकारी देते हुए बताया कि होलिका दहन फाल्गुन शुक्ल की प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा को भद्रा रहित करना शास्त्रोक्त बताया गया है। इस वर्ष फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा (प्रदोष व्यापिनी) रविवार 28 मार्च को मनाई जा रही है। अत: रविवार को होलिका दहन गौधूलि बेला में सूर्यास्त के बाद करना श्रेष्ठ है।

होलिका-दहन के शुभ-मुहूर्त व भद्रा रहित जानकारी देते हुए ज्योतिषाचार्य ने बताया कि रविवार रात्री सुबह 3 बजकर 26 मिनट से दोपहर 1 बजकर 53 मिनट तक भद्रा काल रहेगा। होली पर्व दिवस (रविवार) सायंकाल में पूर्णिमा भद्रा से मुक्त है।

अलग-अलग शहरों के शुभ-मुहूर्त..

दिल्ली में शाम 6:31 से 6:43 बजे तक

लखनऊ में 6:21 से 8:41 बजे तक

हरियाणा में शाम 6:34 से 6:45 बजे तक

जयपुर व कोटा में शाम 6:38 से 6:50 बजे तक

जोधपुर में शाम 6:46 से 6:58 बजे तक

उदयपुर व बीकानेर में शाम 6:48 से 7:00 बजे तक

अजमेर में शाम 6:42 से 6:54 बजे तक

श्रीगंगानगर में शाम 6:46 से 6:58 बजे तक

कोलकाता में शाम 5:46 से 5:58 बजे तक

मुंबई में शाम 6:47 से 6:59 बजे तक

वाराणसी में शाम 6:09 से 6:21 बजे तक शुभ मूहुर्त रहेगा।

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