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कंपनियों को भारी पड़ा चीन और वीगर मुसलमानों के बारे में बोलना

बाजिंग। रिटेल कंपनी नाइकी और एच एंड एम को चीन में लोगों की कड़ी प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ रहा है। दोनों कंपनियों ने ‘शिनजियांग कॉटन’ (कपास) के उत्पादन के लिए वीगर मुसलमानों के कथित जबरन इस्तेमाल को लेकर चिंता व्यक्त की थी। चीन में बहुत से लोग इन कंपनियों के बहिष्कार का आह्वान कर रहे हैं। चीन के कुछ नामी सिलेब्रिटी हैं, जिन्होंने इन कंपनियों के साथ अपने संबंध समाप्त करने की घोषणा की है। साथ ही चीन की कुछ ई-कॉमर्स वेबसाइट्स ने इन ब्रांड्स को अपने प्लेटफॉर्म से हटा दिया है। ये सब ऐसे समय में हो रहा है, जब कई पश्चिमी देशों ने पिछले कुछ दिनों में चीन पर प्रतिबंध लगाये हैं।
चीन पर शिनजियांग प्रांत में अल्पसंख्यक वीगर मुसलमानों के खिलाफ गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन करने का आरोप है। दिसंबर में इस संबंध में एक न्यूज रिपोर्ट प्रकाशित की थी जिससे पता चला था कि चीनी प्रशासन हजारों अल्पसंख्यक वीगर मुसलमानों से शिनजियांग के कपास के खेतों में जबरन काम करा रहा है।


नाइकी और एच एंड एम ने अपने-अपने बयान में कहा था कि वो वीगर मुसलमानों से जुड़ीं रिपोर्ट्स को लेकर चिंतित हैं और दोनों कंपनियों ने बताया था कि वो इस (शिनजियांग) क्षेत्र से अपने उत्पादन के लिए सामान नहीं खरीदतीं। लेकिन अब चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के एक समूह द्वारा सोशल मीडिया पर इसे लेकर एक पोस्ट लिखे जाने के बाद, दोनों कंपनियों के खिलाफ प्रचार होने लगा।


इस पोस्ट में लिखा गया कि ये चीन में व्यापार कर पैसे कमाना चाहते हैं, साथ ही शिनजियांग कॉटन के बहिष्कार की अफवाहें दुनिया में फैलाते हैं। इसके बाद, चीन के सरकारी मीडिया ने इन दो कंपनियों के खिलाफ अभियान छेड़ दिया। चीन का सरकारी मीडिया शिनजियांग कॉटन का बचाव कर रहा है। चीन का सरकारी मीडिया भी इन कंपनियों के उत्पादों का बहिष्कार करने का आह्वान कर रहा है। चीन के सरकारी प्रसारक सीसीटीवी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि इन कंपनियों ने खुद को हीरो साबित करने के लिए ऐसा किया। इसकी कीमत इन्हें चुकानी होगी।


रिर्पोट के अनुसार कंपनी एच एंड एम का चीन से पुराना और लंबा रिश्ता रहा है। दोनों एक दूसरे के लिए महत्व रखते हैं। चीन इस कंपनी के लिए सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है और सबसे बड़ा बाजार भी है। लेकिन इस बार शायद कंपनी ने चीन के घरेलू मामले पर टिप्पणी कर बड़ी मुसीबत मोल ली है। चीन अपनी व्यापारिक शक्ति के दम पर बड़ी कंपनियों और सरकारों पर दबाव बनाता रहा है और उनसे उम्मीद करता रहा है कि वो उसके विवादित मामलों पर ना बोलें।

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