नई दिल्ली। आतंकियों के ड्रोन हमले ने जहां सुरक्षा बलों की नींद उड़ा दी है, वहीं इससे भी बड़ा खतरा ड्रोन का दुश्मन देश की सेनाओं के इस्तेमाल को लेकर है। सेना प्रमुख एम. एम. नरवणे ने भी ड्रोन के सेनाओं के इस्तेमाल और युद्ध के बदलते तरीकों की ओर ईशारा करते हुए युद्ध रणनीति बदलने की बात एक दिन पहले कहीं है। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि सेनाओं एवं सुरक्षा बलों के पास एंटी ड्रोन तकनीक नहीं है।

रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार ड्रोन का इस्तेमाल हमले के लिए जब आतंकी कर सकते हैं तो दुश्मन देश की सेनाएं भी कर सकते हैं। चीन पाकिस्तान को ड्रोन दे रहा है। आशंका यह भी जाहिर की गई है कि पाकिस्तान से आतंकियों को ड्रोन दिए जा रहे हैं। ऐसे में पाकिस्तान और चीन के पास भी ड्रोन हमलों की क्षमता है। लेकिन दोहरे मोर्चे पर मौजूद इस संकट के बावजूद सुरक्षा बलों में अभी ड्रोन रोधी तकनीकों की खरीद प्रक्रिया शुरू करने की बात चल रही है।
डीआरडीओ के पूर्व वैज्ञानिक एवं रक्षा विशेषज्ञ रवि गुप्ता कहते हैं कि तैयारियों में देरी हो रही है। डीआरडीओ ने कई साल पूर्व एंटी ड्रोन तकनीक विकसित की है। इसे पिछले साल 15 अगस्त पर प्रधानमंत्री की सुरक्षा में भी तैनात किया गया। यह तीन किसी के दायरे में आने वाले ड्रोन के सिग्नल जाम कर देती है तथा लेजर वैपन के जरिये उसे नष्ट भी कर सकती है। लेकिन सेनाएं इसे खरीदने में दिलचस्पी नहीं दिखा रही हैं। जबकि कई बार इसके डेमो दिए जा चुके हैं। देश में तकनीक होते हुए भी सुरक्षा बलों का उससे वंचित होना कहीं ज्यादा चिंता का विषय है।
सेना प्रमुख नरवेण ने एक दिन पहले ही चिंता जताई है कि ड्रोन का इस्तेमाल नान स्टेट और स्टेट एक्टर दोनों कर सकते हैं। नान स्टेट एक्टर का तात्पर्य आतंकियों एवं स्टेट एक्टर से तात्पर्य सुरक्षा एजेंसियों से है। लेकिन इसके बावजूद हमारी तैयारियां इस दिशा में नहीं के बराबर है। रक्षा जानकारों के अनुसार सिर्फ ड्रोन ही नहीं, नई तकनीकों से युद्ध का स्वरूप बदल रहा है। कृत्रिम बुद्धिमता के तकनीकों का रक्षा क्षेत्र में उपयोग बढ़ रहा है, इसलिए मिलिट्री संसाधनों को नए सिरे से तैयार होने की जरूरत है। ड्रोन हमले का सबसे घातक हथियार के रूप में उभरकर आ रहा है। इसलिए सेनाओं एवं सुरक्षा बलों को हमले के लिए ड्रोन खरीदने भी होंगे और दुश्मन सेनाओं एवं आतंकियों के हमले नाकाम करने के लिए एंटी ड्रोन तकनीक भी तैनात करनी होंगी।
एआई तकनीकों के इस्तेमाल को लेकर 2018 में बनी नेशनल टास्क फोर्स की सिफारिशों पर हालांकि देश में अमल की बात कही जा रही है लेकिन यह अभी यह योजनाएं बनाने के स्तर पर ही है। जमीनी स्तर पर इसमें ज्यादा खास नहीं हुआ है।