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सीएम योगी भी नहीं रोक पाएंगे मौत का कारोबार!

आगरा। अलीगढ़ के बाद आगरा में शराब कांड ने साफ कर दिया है कि सूबे की योगी सरकार सख्ती का कितना भी ढोल पीटती रहे, लेकिन मौत का कारोबार नहीं रुकेगा। माफिया अपनी और मातहतों की जेबें भरने के लिए जहरीली शराब परोस रहे हैं। पुलिस के हाथ लंबे होते हैं इसमें कोई शक नहीं, लेकिन यह हाथ घटना के बाद ही दिखते हैं।

पुलिस चाहे तो माफिया का कारोबार जमींदोज करना तो छोडि़ए शराब पीने वालों की लत भी छुड़ा सकती है। कच्ची शराब से लेकर अंग्रेजी शराब के सैंपल लेने वाला आबकारी विभाग जांच रिपोर्ट पर अपनी ताकत दिखाए तो जनपद ही नहीं बल्कि किसी गांव या मोहल्ले में भी नकली व मिलावटी शराब बिक नहीं सकती है। सवाल उठता है कि छापामार कार्रवाई में पकड़े जाने वाले माफिया किसके दम पर फिर से मौत का कारोबार करने लगते हैं? इनके मातहतों को जनता से लेकर जनप्रतिनिधि भी जानते हैं, लेकिन मातहतों की ताकत और चालाकी के आगे जनता की आवाज घुट जाती है।

आगरा में शराब कांड कोई पहला नहीं है। यहां इससे पहले भी इसी साल (२०२१) में थाना एत्मादपुर के गांव अगवार, नवलपुर, नयावास में जहरीली शराब का सेवन करने से तीन लोगों की मौत हो चुकी है। जहरीली शराब के कारोबार और उससे मरने वालों के आंकड़ों का इतिहास इससे भी पुराना है। लगभग पांच साल पहले थाना शमसाबाद के गांव गढ़ी खांडेराव और इसौली का पुरा में एक दर्जन से अधिक लोगों की मौत हो गई थी। मौत के पीछे जहरीली शराब रही। मिथाइल अल्कोहल वाली रेक्टिफाइड स्प्रिट से बनी शराब का सेवन करने से लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। शुरू में पुलिस-प्रशासन मौत का कारण भले ही कुछ बताता हो, लेकिन बाद में जहरीली शराब ही होती है।

बता दें कि आगरा के जिन-जिन गांवों में शराब पीने से मौत हुई वो शराब मिथाइल अल्कोहल के ओवरडोज से बनी हुई थी। घटना के बाद जिन शराब माफिया पर पुलिस ने कार्रवाई की थी, उन पर पूर्व में भी छोटी-छोटी कार्रवाई करके पुलिस गुडवर्क दिखाती रही। उन दोनों घटनाओं में भी पुलिस की किरकिरी हुई थी। पीडि़त परिवारों से लेकर क्षेत्रीय लोगों ने पुलिस पर शराब के कारोबार को संरक्षण देने का आरोप लगाया था। पुलिस अपनी ताकत दिखाती तो माफिया दोबारा से कारोबार नहीं करते, जिससे लोगों को अपनी जिंदगी गंवानी पड़ती। फिर से आगरा में दिल दहलाने वाली घटना हुई है, जिसने पुलिस और आबकारी विभाग को सवालों के कठघरे में खड़ा कर दिया है।

जानकारों की मानें तो थाना पुलिस की नजर में शराब तस्करी करने वालों से लेकर जहरीली शराब बनाने वालों का बायोडाटा रहता है। महीनेदारी के कारण माफिया पर सख्त कार्रवाई नहीं होती है। ठेकों की शराब ही नहीं बल्कि घरों और खेतों में बनने वाली शराब के सैंपल लिए जाते हैं, जिसकी जांच रिपोर्ट विभाग के पास आती है। जांच रिपोर्ट में शराब में मौजूद अवयवों की जानकारी होती है। आबकारी विभाग ही नहीं बल्कि थाना पुलिस भी समय-समय पर अभियान चलाकर अपने लक्ष्य को पूरा करती है। अधिकांश मामलों में कच्ची शराब को दर्शाया जाता है। पुलिस के मुखबिरों से लेकर क्षेत्रीय जनता समय-समय पर पुलिस तक जहरीली शराब के गोरखधंधे की जानकारी पहुंचती रहती हैं। इसके बाद भी कड़ी कार्रवाई न होने से माफिया बैखोफ गोरखधंधे को बढ़ाते जाते हैं। जब बड़ी घटना होती है तब पुलिस, आबकारी और प्रशासन अपनी सक्रियता दिखाकर माफिया पर शिकंजा कसने लगते हैं।

यदि इस तरह की कार्रवाई पहले ही करें तो लोग मौत के आगोश में समाने से बच सकें। प्रदेश की योगी सरकार ऐसे माफियाओं पर सख्त कार्रवाई करने के आदेश-दर-आदेश देती रहती है। रासुका लगाने से लेकर संपत्ति कुर्क करने के आदेश पुलिस-प्रशासन को दे रखे हैं, जिसके बाद भी आगरा में माफियागिरी चरम पर है। अलीगढ़ में हुई घटना के बाद आगरा पुलिस, आबकारी और प्रशासन अपनी ताकत दिखाकर सख्त कार्रवाई का डंडा चलाते तो आज इतने परिवारों में मातम नहीं होता।

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