
नई दिल्ली। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पिछले साल कोरोना काल में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा था कि अगर कोई गरीब किरायेदार कोरोना महामारी के दौरान किराया देने में असमर्थ है, तो सरकार इसका भुगतान करेगी। हालांकि, डेढ़ साल बितने के बाद भी ये फैसला लागू नहीं किया गया। अब यह मामला कोर्ट पहुंच गया है। 22 जुलाई को सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा था कि मुख्यमंत्री का वादा लागू करने लायक है। सीएम वादा करते हैं तो नागरिक अपेक्षा करते ही हैं। उनसे अपना वादा पूरा करने को कहा गया था। सिंगल जज के इस फैसले के खिलाफ दिल्ली सरकार ने अपील की। उसने कहा कि दिल्ली सरकार ने ऐसा कोई वादा नहीं किया था। सरकार के वकील ने दलील दी कि सीएम के बयान को वादे के तौर पर नहीं लिया जाए।

सोमवार को दिल्ली हाई कोर्ट ने केजरीवाल सरकार की ओर से गरीब किरायेदारों के किराये के भुगतान के वादे को लागू करने वाले आदेश पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी दिल्ली सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मनीष वशिष्ठ ने कहा, ‘मेरे हिसाब से तो यह कोई वादा ही नहीं था। हमने सिर्फ इतना कहा कि कृपया प्रधानमंत्री के बयान का पालन करें। हमने मकान मालिकों से कहा कि किरायेदारों को किराया देने के लिए मजबूर न करें और अगर कुछ हद तक, गरीब लोग भुगतान नहीं कर पाते हैं, तो सरकार इस पर गौर करेगी।’ एडवोकेट गौरव जैन ने दिल्लीा सरकार की अपील का विरोध किया। उन्होंने कहा कि यह बड़े ताज्जुब की बात है कि दिल्ली सरकार किराये की मामूली रकम देने से मना कर रही है।
चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस ज्योसति सिंह ने दिल्ली सरकार से फिर यह पूछ लिया कि क्याल वो रेंट का कुछ हिस्सा भी देने के लिए तैयार है। इसके बाद सिंगल जज के आदेश को अगली सुनवाई तक रोक दिया गया। मामले की अगली सुनवाई 29 नवंबर मुकर्रर की गई है।