अलौकिक प्रतिमाओं के दक्षिणकाशी-गुप्काशी में मिलने का लगा है तांता सदियों से

सोनभद्र की ऊर्जस्वित धरित्री अपने गर्भ व अंक में समेटे हुए है बेशकीमती थाती ऐतिहासिक, पुरातात्विक , धार्मिक से लेकर बहुमूल्य खनिज सम्पदाओं तक को। तात्कालिक घटनाचक्र की बात करें तो आज आदिम सभ्यता की साक्षी बेलन नदी के तट पर बसे बीरकला मंदहा में मुख्यमंत्री आवास योजना के तहत मिले भवन की नींव की खुदाई करते महज दो फीट नीचे मिली भगवान विष्णु की प्रतिमा। जिले की घोरावल तहसील के इस गाँव में चर्चा जैसे ही फैली उमड़ पड़ा जनसैलाब देखने-दर्शन करने प्रतिमा के। प्रतिमा की ऊंचाई डेढ़ फीट व चौड़ाई एक फीट है जो पाँच से छः इंच मोटे पत्थर पर उत्कीर्ण की गई है।चार भुजाओं वाले विष्णु की मूर्ति के हाथों में शंख,चक्र, गदा, पद्म है तो पैर के पास युवती की आकृति दिखती है जो सम्भवतः नगनवेशा है तो दूसरे पाँव के पास एक मानवाकृति दिखती रही है। इनकी सटीक पहचान में अभी संशय है कि पुरूष-स्त्री के रूप किन -किन देवधारी के हैं। संशय का एक अहम कारण यह भी है कि मिट्टी से निकली मूर्ति के अगल-बगल फावड़े की चोट लगती गई खुदाई में जिससे आकृति में कुछ क्षत्रि हुई है परन्तु मुख्य प्रतिमा विष्णु जी की ही है चतुर्भुज रूप में।

अतीत का स्मरण करें तो चार वर्ष पहले यहाँ से तीन कोस दूर महाँव गाँव में इसी आकर की विष्णु प्रतिमा प्राप्त हुई थी जिसकी लम्बाई चौड़ाई हूबहू थी तो सात साल पहले नाग शैय्या पर लेटे भगवान विष्णु की मूर्ति भी मिल चुकी है जो खेत की जुताई करते समय प्राप्त हुई थी। यह आकस्मिक वाकया ग्राम सतद्वारी का रहा सैट साल पहले का। और पीछे जांय तो वर कन्हरा गाँव मे सन 1985 में मिली थी विष्णु की मूर्ति जो दो बार चोरी जाती रही और मूलआकृति है ही नहीं बल्कि दूसरी मूर्ति बाजार से ला कर प्रतिष्ठित कर दी गई है। इसके अलावा भी यह इलाका मूर्तियों का जखीरा समेटे हुए है अपने अन्तस्तल में और गाहे-बगाहे इनके मिलते रहने का क्रम सदियों से बदस्तूर कायम है। यही अन्तराल आज फिर पूरा हुआ या कहें बारम्बार की होती आवृत्ति की श्रृंखला जीवन्त हो उठी पुरातात्विक अमूल्य धरोहर के पटल पर आने से। वीरकला मंदहा ग्रामवासियों ने मूर्ति धुलने के बाद अक्षत-पुष्प अर्पित कर पूजा प्रक्रिया प्रारंभ कर दी है। धार्मिक भावनाओं का उद्वेग मौके पर देखने को मिल रहा है धर्मप्राण जनसमुदाय में जो विह्वलित हो आस्था श्रद्धा से यथाशक्ति अर्पित करते देखे गए भूवैकुण्ठ स्वामी विष्णु भगवान को।
डॉ.परमेश्वर दयाल पुष्कर