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लाल बहादुर शास्त्री के बचपन से जुड़ा वो किस्सा जिसने शास्त्री जी का पूरा जीवन बदल दिया

नई दिल्ली। देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की 2 अक्टूबर को 118 वीं जयंती मनाई जा रही है। महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री का जन्म एक ही दिन हुआ था और 2 अक्टूबर को दोनों की जयंती मनाई जाती है। दोनों ने ही अपना पूरा जीवन इस देश के लिए समर्पित कर दिया। शास्त्री जी का जन्म उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में 2 अक्टूबर, 1904 को शारदा प्रसाद और रामदुलारी देवी के घर हुआ था। देश की आजादी में लाल बहादुर शास्त्री का खास योगदान है। लाल बहादुर शास्त्री ने विषम परिस्थितियों में शिक्षा हासिल की। कहा जाता है कि वह नदी तैरकर रोज स्कूल जाया करते थे। क्योंकि जब बहुत कम गांवों में ही स्कूल होते थे। 16 साल की उम्र में उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी और गांधी जी के असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए। इसके बाद  लाल बहादुर शास्त्री ने 1921 के असहयोग आंदोलन से लेकर 1942  तक अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। शास्त्री जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद 1965 में भारत पाकिस्तान का युद्ध हुआ। जिसमें शास्त्री जी ने विषम परिस्थितियों में देश को संभाले रखा। सेना के जवानों और किसानों महत्व बताने के लिए उन्होंने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा भी दिया। 

तो हम अपको बताते है उनके बचपन से जुड़ा वो किस्सा जिसने शास्त्री जी का पूरा जीवन बदल दिया। बात उस समय की है जब शास्त्री जी ठीक से बोल भी नहीं पाते थे। सिर से पिता का साया उठ चुका था। मां बच्‍चों को लेकर अपने पिता के यहां चली आईं। पढ़ाई-लिखाई के लिए दूसरे गांव के स्‍कूल में दाखिला करा दिया गया। शास्‍त्री अपने कुछ दोस्‍तों के साथ आते-जाते थे। रास्‍ते में एक बाग पड़ता था। उस वक्‍त उनकी उम्र 5-6 साल रही होगी। एक दिन बगीचे की रखवाली करने वाला कोई नहीं था। लड़कों को लगा इससे अच्‍छा मौका नहीं मिलेगा। सब लपक कर पेड़ों पर चढ़ गए। कुछ फल तोड़े मगर धमाचौकड़ी मचाने में ज्‍यादा ध्‍यान रहा। इतने में माली आ गया। बाकी सब तो भाग गए मगर शास्‍त्री वहीं खड़े रहे। उनके हाथ में कोई फल नहीं, एक गुलाब का फूल था जो उन्‍होंने उसी बाग से तोड़ा था। माली ने बाग की हालत देखी और फिर नन्‍हे शास्‍त्री पर सबका गुस्‍सा उतरा। एक झन्‍नाटेदार तमाचा उस बच्‍चे के गाल पर पड़ा तो वह रोने लगा। मासूमियत में शास्‍त्री बोले, “तुम नहीं जानते, मेरा बाप मर गया है फिर भी तुम मुझे मारते हो। दया नहीं करते।” शास्‍त्री को लगा था कि पिता के न होने से लोगों की सहानुभूति मिलेगी, लोग प्‍यार करेंगे। केवल एक फूल तोड़ने की छोटी की गलती के लिए उसे माफ कर दिया जाएगा, मगर ऐसा हुआ नहीं। जोरदार तमाचे ने उस बच्‍चे की सारी आशाओं को खत्‍म कर दिया था। वह वहीं खड़ा सुबकता रहा। माली ने देखा कि ये बच्‍चा अब भी नहीं भागा, न ही उसकी आंखों में डर है। उसने एक तमाचा और खींच कर दिया और जो कहा, वह शास्‍त्री के लिए जिंदगी भर की सीख बन गया। माली ने कहा था, “जब तुम्‍हारा बाप नहीं है, तब तो तुम्‍हें ऐसी गलती नहीं करनी चाहिए। और सावधान रहना चाहिए। तुम्‍हें तो नेकचलन और ईमानदार बनना चाहिए।” लाल बहादुर शास्‍त्री के मन में उस दिन यह बात बैठ गई कि जिनके पिता नहीं होते, उन्‍हें सावधान रहना चाहिए। ऐसे निरीह बच्‍चों को किसी और से प्‍यार की आशा नहीं रखनी चाहिए। कुछ पाना हो तो उसके लायक बनना चाहिए और उसके लिए खूब और लगातार मेहनत करनी चाहिए।

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