
नई दिल्ली। सिख धर्म के संस्थापक गुरुनानक देव को माना जाता है। गुरुनानक देव सिक्खों के पहले गुरु थे। इनके बाद सभी दस गुरुओं के उपदेश को संग्रह कर एक आचार संहिता बनाई गई है। जिसे दस शिक्षाएं के नाम से भी जाना जाता है। जिसका पालन प्रत्येक सिख परिवार में किया जाता है।
सिख धर्म में सभी गुरुओं ने समय-समय पर शिक्षा और उपदेश दिए हैं। इन्हीं उपदेशों को शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंध कमिटी द्वारा संकलित की गई है।
सिख धर्म के 10 शिक्षाएं-
गुरुवाणी का प्रभाव सिख संगति में अधिक होता है। इसलिए गुरुद्वारे में संगति में बैठकर गुरुवाणी का लाभ लेना चाहिए।
गुरुद्वारे में आरती करना और घंटे बजाना वर्जित है।
इसके अलावा मूर्ति पूजा भी वर्जित है।
गुरुद्वारे में जब गुरुग्रंथ साहिब की सवारी आए तो प्रत्येक सिख को सम्मान में खड़े हो जाना चाहिए।
गुरुद्वारे में किसी भी धर्म-मजहब के लोगों को जाना वर्जित नहीं है।
संगत में साथ बैठे किसी भी व्यक्ति के प्रति ऊंच-नीच, जात-पात और छुआछूत का भेदभाव नहीं रखना चाहिए।
संगत में नंगे सिर नहीं बैठना चाहिए।
स्त्रियों के लिए पर्दा या घूंघट निकालना गुरु मत के विरुद्ध है।
गुरुनानक देव ने एक ॐकार का नारा दिया। जिसका अर्थ है कि ईश्वर एक है। यह हमारे बीच के मतभेदों को मिटाकर हमें मिलकर रहना सिखाता है।
सभी प्रकार के लोभ को त्यागकार हमें अपने हाथों से मेहनत और न्यायोचित तरीके से धन कमाना चाहिए।
किसी का हक नहीं छीनना चाहिए और जरूरतमंदों की मदद करें।
धन को जेब तक ही सीमित रखें, उसे दिल में जगह नहीं दें। अन्यथा नुकसान हो सकता है।