
नई दिल्ली। महात्मा गाँधी बचपन में बहुत ही डरपोक स्वाभाव के थे। रात के अँधेरे में अपने घर में जाने से डरते थे और अगर उन्हें भूत प्रेत की कहानिया सुना दिया जाता था तो वह बहुत ही भयभीत हो जाते थे। ये सब देखकर उनके घर में काम करने वाली नौकरानी रम्भा ने समझाया की जब भी तुम्हे डर लगे। राम का नाम लेना सब डर भाग जायेगा। इस तरह गांधीजी बचपन से अपने जबान पर राम का नाम रटने लगे और अपने डर को दूर किया। उन्हें राम के नाम से इतना प्रेम हो गया था कि अपने मरने के आखिरी क्षण में भी उनका आखिरी शब्द राम ही था।
एक बार की बात है गांधीजी जी अपने बुरे दोस्त की कुसंगति में आने पर महात्मा गाँधी बीडी की लत गयी और उस लड़के के कहने पर महात्मा गाँधी चोरी छिपे मांस भी खाने लगे क्योकि महात्मा गाँधी के घर पर सभी शाकाहारी थे और इस तरह अपने गलत आदत के कारण उन्हें चोरी करने की भी आदत पड़ गयी। इन सबके लिए पैसो की आवश्कयता पड़ती थी और फिर महात्मा गाँधी ने धीरे धीरे कर्ज भी लेना शुरू कर दिया था लेकिन अपने इस कर्ज को चुकाने के लिए अपने बड़े भाई के सोने के कड़े में एक टुकड़ा चुराकर बेच दिया और और अपना कर्जा तो चूका दिया। लेकिन महात्मा गाँधी का मन खुद को इस अपराध के लिए मान नही रहा था और अपने गलतियों को अपने पिता के सामने पत्र के माध्यम से बता दिया। यह सब पढकर उनके पिताजी कुछ भी बोल न सके और महात्मा गाँधी द्वारा लिखा गया पत्र फाडकर फेक दिया। यह सब देखकर महात्मा गाँधी फूटफूटकर रोने लगे और प्रण लिया की आज के बाद वे सारे बुरे काम छोड़ देंगे और इस प्रकार महात्मा गाँधी जो भी शपथ लेते उस पर हमेसा अडिग रहते थे।