सोबती की भाषा मर्मभेदी और स्त्रीत्व की भाषाः मृदुला गर्ग
नई दिल्ली। साहित्य अकादेमी द्वारा आयोजित दो दिवसीय कृष्णा सोबती जन्मशती संगोष्ठी का आज शुभारंभ हुआ। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष माधव कौशिक ने की तथा लबधप्रतिष्ठ कवि एवं आलोचक गिरधर राठी ने बीज वक्तव्य, हिंदी परामर्श मंडल के संयोजक गोविंद मिश्र ने आरंभिक वक्तव्य एवं समापन वक्तव्य साहित्य अकादेमी की उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा द्वारा दिया गया। कार्यक्रम के आरंभ में सभी अतिथियों का स्वागत अंगवस्त्रम् से करने के बाद साहित्य अकादेमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने अपने स्वागत वक्तव्य में कहा कि कृष्णा सोबती जी की सबसे बड़ी पहचान जीवंत भाषा थी। उन्होंने आम लोगों के अनुभवों को अपने लेखन का हिस्सा बनाया। अपने बीज भाषण में गिरधर राठी ने कहा कि वे एक ऐसी लेखिका थी जो अपनी आलोचना को भी गंभीरता से लेती थी और उसका जवाब सतर्कता से देती थीं। गोविंद मिश्र ने उनके साथ बिताए अपने समय को याद करते हुए बताया कि कैसे लेखकों के अंतरसंबंधों का साहित्य पर क्या असर पड़ता है। इसका उदाहरण देते हुए कहा कि उनसे कृष्णा जी ने बहुत पहले ही कह दिया था कि मुझे आलोचना लिखकर सृजनात्मक लेखन ही करना चाहिए, जिसे मैंने माना और उसका फल भी प्राप्त किया। उन्होंने हमेशा अपने पाठकों की परवाह की और उन्हें सबसे ज्यादा महत्त्व दिया। आज का प्रथम सत्र ‘जिंदगीनामा के पुनर्पाठ’ पर आधारित था जो मृदुला गर्ग की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ और इसमें पॉल कौर (पंजाबी), शाफे किदवई (उर्दू) एवं सुकृता पॉल कुमार (अंग्रेजी) ने अपने विचार रखे।