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हिंदी सिनेमा में समय समय पर ऐसी फिल्में आती रही हैं, जो परिवार को महत्व को दिखाती रही हैं. इसी की आगे की कड़ी आज शुक्रवार को रिलीज हुई फिल्म बिन्नी एंड फॅमिली बनी है.जेनेरेशन और कम्युनिकेशन गैप वाले दादा दादी और पोते पोतियों के बीच के रिश्तों के महत्व को यह फिल्म गहराई से दिखाते हुए दिल को छू लेने वाला मैसेज भी दे जाती है कि किसी भी जेनेरशन और कल्चरल गैप को प्यार,सम्मान और बातचीत से खत्म किया जा सकता है. इस फिल्म के विषय और ट्रीटमेंट के साथ इसके कलाकारों का शानदार परफॉरमेंस इसे पूरे परिवार के साथ देखी जानेवाली फिल्म बना देता है.
चर्चित फिल्म एडीटर और नंबर वन फिल्म डायरेक्टर बनने से पहले डेविड धवन की पहचान अभिनेता अनिल धवन के छोटे भाई के तौर पर ही रही है। अनिल धवन के बेटे सिद्धार्थ और बहू रीना की संतान हैं, अंजनी धवन। रिश्ते में वरुण धवन इनके सगे चाचा लगते हैं। वरुण की फिल्म ‘कुली नंबर वन’ में अंजनी सहायक निर्देशक के तौर पर काम कर चुकी हैं। अभिनय की उनकी बेसिक ट्रेनिंग मजबूत है। हिंदी उनकी कमजोर लगती है और शायद इसीलिए अपनी डेब्यू फिल्म में वह अंग्रेजी के सहारे आगे बढ़ने की कोशिश करती नजर आती हैं। अंजनी धवन के किरदार बिन्नी और उसके परिवार की कहानी कहती निर्देशक संजय त्रिपाठी की फिल्म ‘बिन्नी एंड फैमिली’ राजश्री की फिल्मों जैसी देसी तो नहीं है लेकिन इसका डीएनए करीब करीब वैसा ही है।
निर्देशक संजय त्रिपाठी ने पहली बार फिल्म दर्शकों का ध्यान अपनी तरफ कोई 11 साल पहले रिलीज फिल्म ‘क्लब 60’ से खींचा था। फिल्म ‘बिन्नी एंड फैमिली’ भी वह करीब सात साल से बनाते आ रहे हैं। कोई न कोई दिक्कत सामने आती रही और फिल्म आगे खिसकती रही, लेकिन इतना लंबा समय लगने पर जैसा अमूमन फिल्मों के साथ हो जाता है, वैसा इस फिल्म के साथ नहीं हुआ है और ये फिल्म आज भी ताजगी से पूरी तरह भरपूर नजर आती है। बेतिया में पेंशनकर्मियों की लड़ाई लड़ते समाजसेवी का लंदन में बसा बेटा अपनी तेजी से जवान होती बेटी से कदमताल करने की कोशिश कर रहा है। पत्नी उसकी उसका हर रंग में साथ देती है और दोनों मिलकर बिहार और लंदन की जिंदगी में संतुलन बनाने की कोशिश करते रहते हैं।
फिल्म ‘बिन्नी एंड फैमिली’ की कहानी का ट्विस्ट आता है बिन्नी की बगावत से। जब भी उसके दादा, दादी बिहार से लंदन आते हैं, उसका कमरा उससे छिन जाता है। इस बार दादी बीमार हैं। बिन्नी के पापा अपनी मां को घर लाना चाहते हैं। बिन्नी और उसकी मां का वोट विपक्ष में पड़ता है। मां नहीं आ पाती है। बेटा लाचार दिखता है और फिर वही होता है जैसा इस तरह की कहानियों में होता है। मां गुजर जाती है। बिन्नी और उसकी मां को अपनी गलती का एहसास होता है। दोनों मिलकर इसकी भरपाई करने की कोशिश भी करते हैं लेकिन एक दिन वह राज खुल जाता है जो नहीं खुलना चाहिए था। इसके बाद बिन्नी और उसके दादा के बीच जो कुछ घटता है, वह भीगी पलकों का किस्सा है और इसे सिनेमाघर में फिल्म देखकर ही महसूस किया जा सकता है।
निर्माता महावीर जैन की कोशिशों से ही फिल्म ‘बिन्नी एंड फैमिली’ के बारे में जो भी चर्चा सिनेप्रेमियों के बीच हो पाई है, वह मुमकिन हुई है। उनकी कंपनी ने ये फिल्म प्रस्तुत की है। फिल्म को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने के सारे जतन उन्होंने किए हैं। वरुण धवन, जान्हवी कपूर जैसे कलाकारों के बाद की पीढ़ी की हैं अंजनी धवन। लेकिन, वह पूरी तैयारी के साथ कैमरे के सामने आई हैं। फिल्म की जितनी कहानी लंदन में घटती है, वहां अधिकतर संवाद अंग्रेजी में ही हैं और इस तरह इस किरदार की बुनावट अंजनी को उनकी डेब्यू फिल्म में काफी मदद भी करती हैं।
लेकिन, फिल्म ‘बिन्नी एंड फैमिली’ की असल जान हैं पंकज कपूर। एक बागी पोती के दादा और एक मजबूर बेटे के पिता के रूप में तो पंकज कपूर यहां अपने किरदार में जान फूंकते ही हैं, पत्नी के वियोग में रात को फूट फूटकर रोते लाचार इंसान का पहलू दिखाकर वह दिल जीत लेते हैं। ‘मैश्ड पोटेटो’ में सरसों का तेल, नमक और हरी मिर्च डालकर उसका चोखा बनाने वाला सीन फिल्म की जान है। और, यही वह रंग है जो निर्देशक संजय त्रिपाठी इस फिल्म को देखने वाली तीन पीढ़ियों के बीच गाढ़ा होते देखना भी चाहते होंगे। पीढ़ियों के बीच निरंतर संवाद की जरूरत समझाती ये फिल्म बताती हैं, दो पीढ़ियों के बीच संवाद जितना कम होता जाता है, दो पीढ़ियों के बीच की दूरी उतनी ही ज्यादा बढ़ती जाती है। राजेश कुमार और चारु शंकर ने भी बिन्नी के माता-पिता के किरदार में प्रभावी अभिनय किया है। बिन्नी की दादी बनी हिमानी शिवपुरी भी अपनी तरफ से अपने चरित्र को प्रभावी बनाने की पूरी कोशिश करती हैं।
फिल्म ‘बिन्नी एंड फैमिली’ चूंकि भावना प्रधान फिल्म है लिहाजा फिल्म की तकनीकी पहलुओं की तरफ ध्यान ज्यादा जाता नहीं है। दो अलग अलग देशों में घटती कहानी में आसपास के वातावरण को और बेहतर तरीके से उभारा जा सकता था, लेकिन सिनेमैटोग्राफर मोहित पुरी संभवत: उस तरफ ध्यान दे नहीं पाए। वेशभूषा में हिमांशी निझावन ने बजट भर काम किया है। सौरभ प्रभुदेसाई का संपादन फिल्म को चुस्त बनाए रखने में मदद करता है। फिल्म में संगीत ललित पंडित का है लेकिन इसका गाना वही प्रभावी है जो विशाल मिश्रा ने बनाया है।
अंजिनी सहित सभी कलाकारों का उम्दा परफॉरमेंस
अभिनय की बात करें तो इस फिल्म से स्टारकिड अंजिनी धवन ने अपनी शुरुआत की है. फिल्म में उन्होंने पावरफुल परफॉरमेंस दी है.उन्होंने अपने किरदार से जुड़े गुस्से ,गिल्ट,मासूमियत सभी को बखूबी जिया है.पंकज कपूर जैसे उम्दा कलाकार के साथ जिस तरह से उन्होंने स्क्रीन पर एनर्जी को मैच किया है. वह उनकी काबिलियत को दर्शाता है. पंकज कपूर हमेशा की तरह फिर बेस्ट रहे हैं.राजेश कुमार ने एक पिता और बेटे के बीच की जद्दोजहद को फिल्म में बखूबी जिया है. चारु शंकर अपनी भूमिका के साथ न्याय करती है. हिमानी शिवपुरी अपनी छोटी भूमिका में भी छाप छोड़ा है.फिल्म में नवोदित कलाकार नमन त्रिपाठी ने अपनी मौजूदगी और संवाद अदाएगी कॉमेडी का रंग भरा है.बाकी के कलाकारों ने भी अपनी भूमिका के साथ न्याय किया है.
अगर पूरे परिवार के साथ आपने अरसे से कोई फिल्म नहीं देखी है तो इसे जरूर देखें। बच्चों को दादा-दादी या नाना-नानी का साथ हासिल है तो वे उनके साथ ये फिल्म हाथ में पॉपकॉर्न और जेब में एक रुमाल लेकर देख सकते हैं।