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सनातन धर्म परम्परा को बालव्यास ने बताया चरम शिखर पर
सोनभद्र ।
सोनाञ्चल परिधि की द्वितीयकाशी – दक्षिणकाशी नाम से अभिधानित तपस्थली सिहावल में चल रही भगवत्कथा व विराट रूदमहायज्ञ सँग रासलीला की प्रवहमान सलिला त्रिवेणी के तृतीय दिवस श्रीमद्भागवत कथा प्रसंग को आलोकित करते ध्रुव चरित्र को व्याख्यायित किया बृन्दावन से आये बालव्यास रवि जोशी ने।
ध्रुव के आविर्भाव – आगमन से शुरू तीसरे दिन की कथा में ध्रुव द्वारा महर्षि नारद को गुरु मानने के सन्दर्भ को उकेरते तपस्या में लीन हो जाने के कथा वृत्तांत बताये। इनके तपस्यारत होने से देवगणों के चिन्तातुर होने व हाहाकार मच जाने की कथा व्याख्यायित करते कहा कि इससे प्रभावित नारायण विष्णु आते हैं और भगवान विष्णु अपना शँख ध्रुव के मुख से सटाते हैं और परिणतिस्वरूप ध्रुव भगवान विष्णु के अनेकानेक स्तुतियों का गान करते हैं। अंततः ध्रुव को प्रभु कृपा से भगवतत्प्राप्ति होती है। कथाव्यास ने अन्त में सनातनधर्म परम्परा के गूढ़ अर्थ बताते इसे निहितार्थ परिभाषित किये।


यज्ञ आयोजन समिति के संरक्षक डॉ0 परमेश्वर दयाल श्रीवास्तव ने बताया कि बृन्दावन से आये कथाव्यास के साथ हो रही संगीतमय कथा के पश्चात रात्रिकालीन रासलीला मंचित हुई पूतनावध व श्रीकृष्ण जन्म से तो कालिया नाग नाथन जमुना मेंश्रीकृष्ण द्वारा होने के सुघड़ दृश्य मंचित हुए। कालिया नाग द्वारा कंस को एक करोड़ नीलकमल पुष्प पहुंचाने के परिदृश्य रोमांचित करने वाले रहे। कथाव्यास सँग वाद्ययंत्रों की मण्डली में प्रमुख रूप से ऑर्गन वादक देवकीनन्दन तथा तबले पर डालचंद रहे तो रासलीला का जीवन्त मंचन परमानन्द की अगुवाई में श्रीराधाबल्लभ लोककला भारती जत्थे ने किया।
तृतीय दिवस के प्रथम प्रहर में विराट रुद्रमहायज्ञ में हवन आहुति दी गई जड़ीबूटी से। संत रामनिवास शुक्ल की अध्यक्षता व भिखारीबाबा दीनबंधु जंगली दास की निगहबानी में संचालित अनुष्ठान आयोजन में समुपस्थिति रही नन्दू शुक्ला, कलई विश्वकर्मा, भरत पॉल, तौलन पॉल, रामधनी पॉल, लाले पॉल, त्रिवेणी, सुखराम, पँचधारी, लक्ष्मण प्रताप, गोपाल, गणेश, राजनारायण पॉल, कमलेश विश्वकर्मा के साथ गणमान्य श्रद्धालुओं की।

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