आज मै आपको एक ऐसे महान इजराइली जासूस की सच्ची कहानी बताऊंगा, जिन्होंने अपने देश को दुश्मन देश के विरुद्ध एक बड़ी जीत दिलवाई. एक जासूस का जीवन बहुत ही खतरनाक परिस्थिति से होकर गुजरता है, हर कदम में उसको मौत का खतरा होता है, बावजूद इसके वह अपने लक्ष्य की और बढता रहता है. कई बार दुश्मन देशो में जासूसी के दौरान पकडे जाने पर, उसको उसका देश अपनाने से मना कर देता है. उसका देशप्रेम ही है जो प्राण की परवाह करे बिना, उसको जासूसी के कार्य में आगे बढने से नहीं रोकता. आइए जानते है उस महान जासूस के बारे में जो दुश्मन देश का रक्षामंत्री बनते बनते रह गया. इस बहादुर जासूस के जीवन पर आधारित एक वेब सीरिज भी बनी है जिसका नाम है “द स्पाई” आइए उनकी प्रेणादायक जीवन की कहानी को जाने.
इजराइल को सीरिया से बड़ा खतरा बना हुआ था, 1960 के दशक में जब सीरिया की ओर से इजरायल पर हमला किया जाने लगा, तो मोसाद ने एक जासूस की तलाश शुरू की जो सीरिया में रहकर कुछ जानकारी जुटा सके, जिसके लिए इजराइल की खुफिया एजेंसी एक जांबाज जासूस की खोज कर रही थी, मोसाद को एली कोहेन के रूप में एक महान जासूस मिल जाता है, उनसे इंटरव्यू के दौरान तीन प्रश्न पूछे जाते है और उनका उत्तर एली कोहेन बड़ी ही आसानी से हाँ में कह कर दे देते है, जिसको वे अपने जासूसी के जीवन में सिद्ध करके इजराइल को सीरिया के खिलाफ एक ऐतिहासिक जीत दिलवाते है. मोसाद के तीन ऐतिहासिक प्रश्न इस प्रकार थे.
क्या आप अपने देश के लिए नौकरी छोड़ सकते हो?
क्या आप अपने देश के लिए परिवार छोड़ सकते हो?
क्या आप अपने देश के लिए अपनी जान दे सकते हो?
ये सवाल इज़रायल की खुफिया एजेंसी मोसाद ने अपने जासूस एली कोहेन से पूछे थे, जब उन्हें एक मिशन के लिए तैयार किया जा रहा था.
ये कहानी शुरू होती है गोलन हाइट्स की लड़ाई से. ये दक्षिण पश्चिमी सीरिया में स्थित एक पहाड़ी इलाका है. जो राजनीतिक और रणनीतिक रूप से बेहद अहम है. यहां से जॉर्डर नदी गुजरती है. इजरायल को 30-40 फीसदी पानी यहीं से मिलता है. इसके अलावा गोलन हाइट्स पर पहले सीरिया की सेना रहती थी, जिससे इजरायल के लोग परेशान थे. इसी वजह से ये जगह इजरायल के लिए काफी अहम हो गई.
एली कोहेन 1960 में इजरायली खुफिया विभाग से जुड़े और काम शुरू किया. एक साल बाद ही उन्हें सीरिया में जासूसी करने के लिए प्रशिक्षित करना शुरू कर दिया गया और एक कारोबारी बनाकर किसी तरह सीरिया पहुंचाया गया. उनका नाम रखा गया कामिल अमीन थाबेत जो एक एक्सपोर्ट का काम करता था, उसने सीरिया के दमिश्क में अपना बिजनेस शुरू किया.
दमिश्क सीरिया की राजधानी थी, इसलिए सत्ता यहां पर ही थी. पैसों का इस्तेमाल कर कामिल अमीन थाबेत उर्फ एली कोहेन बड़े लोगों की नजर में आना शुरू हो गए, देखते देखते उनकी दोस्ती सेना के जनरल के भतीजे से हो जाती है, उसी की मदद से वे बॉर्डर तक पहुचे, वह ऐसे स्थानों में पहुचे, जंहा से सीरिया इजराइल के लिए साजिस रचता था. यह उनकी सबसे बड़ी जीत थी, जिसकी मदद से उन्होंने सीरिया की सारी खुफिया जानकारी इजराइल की खुफिया एजेंसी मोसाद को देनी शुरू कर दी, इस खुफिया जानकारी की मदद से ही इजराइल ने सीरिया समेत 5 देशो को युद्ध में 6 दिन में ही हरा दिया. इस युद्ध को गोल्डन हाइट्स के युद्ध के नाम से भी जाना जाता है, जिसको जिताने का सारा श्रेय जासूस एली कोहेन को ही जाता है. 1967 में हुई इस लड़ाई में एक तरफ इजरायल था तो दूसरी ओर मिस्र, सीरिया, जॉर्डन, ईराक शामिल थे. इसके अलावा लेबनान भी इन देशों के साथ था.
1961 से 1965 तक उन्होंने 4 साल सीरिया में जासूसी की, वहां की सारी जानकारी अपनी खुफिया एजेंसी मोसाद को देते रहे. सीरिया के पास कितने हथियार है, कहाँ कितने जवान खड़े है. यंहा तक कि कहां से घुसपैठ के रास्ते का उपयोग हो रहा है आदि महत्वपूर्ण जानकारियाँ मोसाद को देते रहे.
इजरायल-सीरिया के बीच गोल्डन हाइट्स जिसे इजरायल ने जीत लिया था, वहां पर यूकेलिप्टस के पेड़ लगाने का आइडिया सीरिया को एली कोहेन ने ही दिया. इन पेड़ों के लगाने के बाद से ही इजरायल को संकेत मिला कि आखिर सीरियाई जवान बॉर्डर पर कहां तैनात हैं और कब हमला करने से फायदा होगा.
एली का जन्म साल 1924 में मिस्र के एलेग्ज़ेंड्रिया में एक सीरियाई-यहूदी परिवार में हुआ था.
उनके पिता साल 1914 में सीरिया के एलेप्पो से यहां आकर बसे थे. जब इजराइल बना तो मिस्र के कई यहूदी परिवार वहां से निकलने लगे.
साल 1949 में कोहेन के माता-पिता और तीन भाइयों ने भी यही फ़ैसला किया और इसराइल जाकर बस गए. लेकिन इलेक्ट्रॉनिक्स की पढ़ाई कर रहे कोहेन ने मिस्र में रुककर अपना कोर्स पूरा करने का फ़ैसला किया.
साल 1955 में वो जासूसी का छोटा सा कोर्स करने के लिए इसराइल गए और अगले साल मिस्र लौट आए. हालांकि, स्वेज़ संकट के बाद दूसरे लोगों के साथ कोहेन को भी मिस्र से बेदख़ल कर दिया गया और साल 1957 में वो इजराइल आ गए.
यहां आने के दो साल बाद उनकी शादी नादिया मजाल्द से हुई, जो इराक़ी-यहूदी थीं और लेखिका सैमी माइकल की बहन भी. साल 1960 में इजराइली ख़ुफ़िया विभाग में भर्ती होने से पहले उन्होंने ट्रांसलेटर और एकाउंटेंट के रूप में काम किया.
अरबी, अंग्रेज़ी और फ़्रांसीसी भाषा पर ग़ज़ब की पकड़ की वजह से इसराइली ख़ुफ़िया विभाग उन्हें लेकर काफ़ी दिलचस्प हुआ था.
जनवरी 1965 में सीरिया के काउंटर-इंटेलीजेंस अफ़सरों को उनके रेडियो सिग्नल की भनक लग गई और उन्हें ट्रांसमिशन भेजते समय रंगे हाथ पकड़ लिया गया. कोहेन से पूछताछ हुई, सैन्य मुक़दमा चला और आख़िरकार उन्हें सज़ा-ए-मौत सुनाई गई.
कोहेन को साल 1966 में दमिश्क में एक सार्वजनिक चौराहे पर फांसी दी गई थी. उनके गले में एक बैनर डाला गया था, जिसका शीर्षक था ‘सीरिया में मौजूद अरबी लोगों की तरफ़ से.’
इजराइल ने पहले उनकी फांसी की सज़ा माफ़ करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अभियान चलाया लेकिन सीरिया नहीं माना. कोहेन की मौत के बाद इजराइल ने उनका शव और अवशेष लौटाने की कई बार गुहार लगाई लेकिन सीरिया ने हर बार इनकार किया.
इजराइल और उसकी खुफिया एजेंसी अपने इस महान जासूस के बलिदान को बिलकुल नहीं भुला, मोसाद ने एली कोहेन की मृत्युं के 53 साल बाद एक ख़ास अभियान में, महान जासूस की घड़ी ढूंढ निकाली. महान जासूस की घड़ी मिलने की खबर से पूरा इजराइल खुश था. सबसे ज्यादा कोई खुश था तो वो थी महान जासूस की पत्नी नादिया, जिनको मोसाद ने ये घड़ी दी. जिसे पाकर नादिया बहुत खुश थी, नादिया का कहना था कि यह घड़ी पहनकर, उनको अपने स्वर्गीय पति का अपने पास होने का एहसास हो रहा है.
हमे अपने नायको को कभी भी नहीं भूलना चाहिए, हर देश में हर क्षेत्र से नायक निकलते है और इतिहास रच डालते है. इन ही नायको के कारण देश में नए नए क्रीतिमान होते है. जो देश के हर नागरिको को मौलिक अधिकार के रूप में जीने का वरदान दे जाते है.