हिंदी भाषा का इतिहास लगभग एक हजार वर्ष पुराना है. संस्कृत भारत की सबसे प्राचीन भाषा है. हिंदी भाषा का जन्म संस्कृत भाषा से ही हुआ है. भारत में अधिकतर लोगो की मातृभाषा हिंदी ही है. हिंदी भाषा का अपना अलग ही महत्व है.
महात्मा गांधी जी का सपना हिंदी को राष्ट्र भाषा का दर्जा दिलवाना था, लेकिन कुछ राज्यों(तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, बंगाल) के आपत्ति के कारण हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा तो नहीं मिल पाया. मगर हिंदी के महत्व को समझते हुए भारत की संविधान सभा ने 14 सितंबर 1949 को हिंदी भाषा को राजभाषा का दर्जा दिया. वर्ष 1953 में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा ने 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाए जाने का प्रस्ताव दिया तब से ये दिन हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा.
हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिले लम्बा समय हो चूका है. यहां तक कि हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा बनने से रोकने और अपनी आपत्ति जताने वाले राज्यों को भी हिंदी की महत्वता की समझ आने लगी है. अब समय आ गया है कि हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा मिले. हम जानते हैं कि हिंदी भारत के अधिकतर नागरिको की मातृभाषा है, अगर हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा मिलता है तो सभी भारतीय नागरिक इससे लाभान्वित होंगे. आपत्ति जताने वाले राज्यों को भी समझना होगा कि देश में राष्ट्रभाषा का होना बहुत ही जरुरी है, राष्ट्रभाषा का दर्जा एक महत्वपूर्ण भाषा को ही मिल सकता है. आपत्ति जताने वाले राज्यों के अधिकतर सरकारी कर्मचारी और अधिकारी भी हिंदी सीख रहे है और अपने ऑफिसियल पत्राचार का हिंदी में प्रयोग कर रहे हैं.
आपने चीन, जापान आदि देश के बारे में सुना होगा, जो केवल अपनी भाषा को महत्व देते है, हमारा यह कहना बिल्कुल नहीं है कि हम अन्तराष्ट्रीय भाषा अंग्रेजी को दरकिनार कर दें. हमारे देश में हिंदी के साथ साथ अंग्रेजी को भी राजभाषा का दर्जा प्राप्त है. लेकिन देश में अंग्रेजी को इतना महत्व दे दिया गया है कि अधिकतर लोगो को हिंदी में बात करने में शर्म आती है. अपनी मातृभाषा पर सबको गर्व होना चाहिए. माना अंग्रेजी अन्तराष्ट्रीय भाषा है और विदेशी संबंधों के लिए अन्तर्राष्ट्रीय भाषा बहुत जरुरी है. लेकिन इसके लिए हिंदी के महत्व को कम नहीं आंका जा सकता है. देश को सुचारू रूप से चलाने के लिए राष्ट्रभाषा का होना बहुत ही जरुरी है, अन्यथा देश के ग्रामीण और शहरी क्षेत्र के सरकारी विधालयो में पढने वाले अधिकतर होनहार छात्रो को ज्ञान होने के बावजूद भी, देश में अंग्रेजी को महत्व देने के कारण, वे अपने ज्ञान को अंग्रेजी में व्यक्त करने में असमर्थ होते हैं.
बड़ी बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब पाने के लिए, देश के अधिकतर युवाओं को, जिन्होंने हिंदी माध्यम से अपनी शिक्षा प्राप्त की है, को बहुत संघर्ष करना पड़ता है. जब अपने ही देश में, अपनी भाषा को महत्व नही दिया जायेगा तो युवाओं को रोजगार आदि में बहुत परेशानी आती है.
हिंदी भाषा को महत्व न देने के कारण, अधिकतर युवा को अपनी प्रतिभा से, देश और अपने परिवार का नाम रोशन करने के लिए, एक बहुत ही संघर्षपूर्ण राह से चलना होता है. बहुत से युवा तो, संघर्ष के बाद भी पिछड़ जाते है.
अगर हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा नही दिया गया तो, सभी माता- पिता को अपने बच्चो को प्राइवेट स्कूलो में पढ़ाने की होड़ लगी रहेगी. अधिकतर माता पिता ऐसे भी होते हैं जो अपने बच्चों को अपने सामर्थ्य से बाहर होने के बाद भी, प्राइवेट स्कूल में पढ़ाते हैं, जिससे उनके जीवन में थोड़े से भी आर्थिक उथल पुथल से उनका जीवन बहुत ही संघर्षपूर्ण हो जाता है.
हर माँ बाप अपने बच्चे को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाना चाहते है, लेकिन आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण, अधिकतर माता- पिता को अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में न पढ़ा पाने का दर्द बना रहता है. जब तक हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं दिया जायेगा. तब तक हिंदी पर अंग्रेजी हावी ही रहेगी. जिससे देश के युवाओं का जीवन बहुत ही संघर्षपूर्ण रहेगा.