प्रो अनेकांत कुमार जैन
प्राकृत विद्या भवन ,नई दिल्ली
सुप्रसिद्ध तीर्थ अयोध्या का एक इतिहास ऐसा भी है जिससे आम लोग आज भी अपरिचित हैं ।
यह जैन परंपरा का एक शाश्वत महान् तीर्थ लाखों वर्षों से रहा है । यहाँ खुदाई में मिली प्राचीन मूर्तियां और प्राचीन जैन साहित्य इस बात की पुष्टि करता है ।
प्राचीन जैन साहित्य में धर्म नगरी अयोध्या का उल्लेख कई बार हुआ है ।जैन महाकवि विमलसूरी(दूसरी शती )प्राकृत भाषा में पउमचरियं लिखकर रामायण के अनसुलझे रहस्य का उद्घाटन करके भगवान् राम के वीतरागी उदात्त और आदर्श चरित का और अयोध्या का वर्णन करते हैं तो प्रथम शती के आचार्य यतिवृषभ अपने तिलोयपण्णत्ति ग्रंथ में अयोध्या को कई नामों से संबोधित करते हैं । जैन साहित्य में राम कथा सम्बन्धी कई अन्य ग्रंथ लिखे गये, जैसे रविषेण कृत ‘पद्मपुराण’ (संस्कृत), महाकवि स्वयंभू कृत ‘पउमचरिउ’ (अपभ्रंश) तथा गुणभद्र कृत उत्तर पुराण (संस्कृत)। जैन परम्परा के अनुसार भगवान् राम का मूल नाम ‘पद्म’ भी था।
बाद में तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में प्राकृत ,अपभ्रंश में रामायण लिखने वाले सभी कवियों को कवि वंदना के रूप में प्रणाम भी किया है ,निश्चित रूप से उन्होंने रामचरित मानस की रचना से पूर्व उन ग्रंथों का स्वाध्याय किया था –
जे प्राकृत कबि परम सयाने ।भाषाँ जिन्ह हरि चरित बखाने ॥
भए जे अहहिं जे होइहहिं आगें ।प्रनवउँ सबहि कपट सब त्यागें ॥
भावार्थ -जो बड़े बुद्धिमान प्राकृत कवि हैं, जिन्होंने भाषा में हरि चरित्रों का वर्णन किया है, जो ऐसे कवि पहले हो चुके हैं, जो इस समय वर्तमान हैं और जो आगे होंगे, उन सबको मैं सारा कपट त्याग कर प्रणाम करता हूँ।- श्रीरामचरितमानस (बालकाण्ड )
ज्ञातव्य है कि शास्त्रों में अयोध्या को अवध, अयुध्या ,विनीता नगरी,साकेत,सुकौशल,रामपुरी और विशाखा आदि कई नामों से पुकारा गया है । जैन परंपरा में यह एक शाश्वत तीर्थ है ।
जैन परंपरा के अनुसार यह वर्तमान के 24 में से पांच तीर्थंकरों की जन्मभूमि है बस इतना ही नहीं है ,बल्कि यह अनंतानंत तीर्थंकरों की जन्मभूमि भी है और प्रत्येक चतुर्थकाल में चौबीसों तीर्थंकर प्रभु नियम से अयोध्या में ही जन्म लेते हैं । वर्तमान के हुंडावसर्पिणी काल के दोष के कारण प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव ,द्वितीय तीर्थंकर अजितनाथ,चतुर्थ तीर्थंकर अभिनन्दन नाथ ,पंचम तीर्थंकर सुमतिनाथ एवं चौदहवें तीर्थंकर अनंतनाथ इन पांच की ही आज जन्मभूमि है ।
आचार्य यतिवृषभ (प्रथम शती )इसका वर्णन अपने प्राकृत भाषा के ग्रंथ लिखते तिलोयपण्णत्ति में करते हैं ।
आचार्य संघदासगणि(3शती ई.) ने प्राकृत भाषा में एक विशाल गद्यात्मक कथाकृति ‘वसुदेवहिंडी’ में उल्लेख किया है ।उन्हीं के शब्दों में-
यहाँ सुरासुर वन्दित चरणारविंद वाले जगत्पितामह ऋषभ नाम के प्रथम राजा थे | उनके सौ पुत्र थे ,जिनमें दो मुख्य थे : भरत और बाहुबली | ऋषभ श्री अपने सौ पुत्रों को सौ नगर और सौ जनपद देकर प्रव्रजित हो गए | उन पुत्रों में भरत भारतवर्ष के चूड़ामणि थे | उनके ही नाम पर यह देश भारत वर्ष कहा जाता है | वे विनीता (अयोध्या)के अधिपति थे और बाहुबली हस्तिनापुर तक्षशिला के स्वामी |
गणिनी आर्यिका ज्ञानमती जी ‘महातीर्थ अयोध्या’ नामक पुस्तक में लिखती हैं कि अगणित महापुरुषों ने इस अयोध्या को पवित्र किया है । आदिपुराण के बारहवें पर्व में आचार्य जिनसेन(नौवीं शती ) ने अयोध्या नगरी का बड़ा वैभवशाली विस्तृत वर्णन किया है वे लिखते हैं –
देवों ने उस नगरी को वप्र(धूलि के बने हुए छोटे कोट ),प्राकार(चार मुख्य दरवाजों से सहित ,पत्थर के बने हुए मजबूत कोट )और परिखा आदि से सुशोभित किया था |उस नगरी का नाम अयोध्या था |वह केवल नाम मात्र से अयोध्या नहीं थी बल्कि गुणों से अभी अयोध्या थी |कोई भी शत्रु जिसे न जीत सके उसे अयोध्या कहते हैं – अरिभिः योद्धुं न शक्या |
राजस्थान के अजमेर में सोनी जी की नाशियाँ जैन मंदिर,सिद्धकूट चैत्यालय में अयोध्या नगरी की स्वर्ण रचना बनी है जिसको देखने पर्यटक देश विदेश से आते हैं ।इस मंदिर में तीर्थंकर ऋषभदेव की प्रतिमा 1865 में सुप्रसिद्ध जैन विद्वान् पंडित सदासुखदास जी के निर्देशन में जैन श्रेष्ठी रायबहादुर सेठ मूलचंद एवं नेमीचंद सोनी जि के द्वारा विराजमान की गई थी |उसी समय से यहाँ सोने की अयोध्या नगरी का निर्माण आदिपुराण के अयोध्या नगरी के वैभवशाली वर्णन के अनुसार प्रारंभ किया गया , 1895 में यह कार्य पूरा हुआ और इसका नाम स्वर्ण ,सोनी या सोने का मंदिर पड़ गया |
पंडित बलभद्र जी ने भारत के दिगंबर जैन तीर्थ पुस्तक के भाग 1 में अयोध्या में वर्तमान के जैन मंदिरों का विस्तृत वर्णन किया है |
जिन पांच तीर्थंकरों ने यहाँ जन्म लिया उनके स्मरण स्वरूप यहाँ उनकी टोंक ,मंदिर,मूर्तियां और चरण चिन्ह स्थापित हैं तथा दर्शनार्थी उनका प्रतिदिन दर्शन पूजन और अभिषेक करते हैं ।
वर्तमान में यहाँ कटरा स्थित दिगम्बर जैन मंदिर में दूसरे तीर्थंकर अजितनाथ जी,चौथे तीर्थंकर अभिनंदननाथ जी और पांचवें तीर्थंकर सुमतिनाथ जी की टोंक तथा मंदिर है।
सरयू नदी के तट पर चौदहवें तीर्थंकर अनंतनाथ का मंदिर (टोंक) तथा है । अयोध्या में ही बक्सरिया टोले में मस्जिद के पीछे तीर्थंकर आदिनाथ का एक छोटा जैन मंदिर है जहां उनकी ही टोंक स्थापित है ।
इतिहासकार मानते हैं कि 1194 ई. में मुहम्मद गोरी के भाई मखदूम शाह जूरन गोरी ने अयोध्या पर आक्रमण किया था । उस समय यहाँ स्थित एक विशाल ऋषभदेव जैन मंदिर को तोड़कर उसने मस्जिद का निर्माण करवाया था ।
यह कथानक प्रसिद्ध है कि कालांतर में जैनों ने जब मुगल शासक नबाब फैजुद्दीन से फ़रियाद की कि यह हमारा मंदिर था ,तब उसने प्रमाण मांगा और यहां खुदाई करने पर एक स्वस्तिक,नारियल और एक चौमुखा दीपक मिला ,तब उसने थोड़ी जगह दे दी । जैन लोगों ने अनुमति लेकर पास में एक छोटा मंदिर बनवा कर वहाँ ऋषभदेव के चरण चिन्ह स्थापित करवा दिए ।यहां के कटरा मुहल्ले में भी एक टोंक है जहाँ यहीं जन्म लेने वाले ऋषभदेव के पुत्र भरत और बाहुबली के चरण चिन्ह स्थापित हैं ।
सन् 1330 तक अयोध्या में अनेक जैन मंदिर हुआ करते थे ।कटरा मंदिर में 1952 में तीर्थंकर आदिनाथ ,भगवान् भरत और भगवान् बाहुबली की तीन मूर्तियां विराजमान की गईं थीं। सन् 1965 में रायगंज में रियासती बाग के मध्य एक विशाल मंदिर बना है जिसमें 31 फुट ऊंची तीर्थंकर ऋषभदेव की प्रतिमा विराजमान हैं ।
आर्यिका गणिनी ज्ञानमती माता जी की प्रेरणा से 1994 को यहाँ महामस्तकाभिषेक का आयोजन करवाया और तीन चौबीसी मंदिर और समवशरण मंदिर का नवीन निर्माण भी करवाया गया ।इन्हीं की प्रेरणा से इस जैन तीर्थ का बहुत विकास हो रहा है |यहाँ विश्वशांति जिन मंदिर ,भगवान् ऋषभदेव सर्वतोभद्र जन्म महल , तीस चौबीसी जिनमंदिर ,भगवान् भरत जिन मंदिर तथा 84 फुट ऊँची तीन लोक की रचना प्रस्तावित है |
तीर्थंकर ऋषभदेव को स्मृति में यहाँ शासन के पर्यटन विभाग ने राजघाट के राजकीय उद्यान का नाम भगवान् श्री ऋषभदेव उद्यान रखा है जिसमें माता की ही प्रेरणा से तीर्थंकर ऋषभदेव की 21 फुट विशाल धवल पद्मासन प्रतिमा विराजमान की गई है तथा अवध विश्वविद्यालय में श्री ऋषभदेव जैन शोधपीठ भी स्थापित की गई है |अयोध्या में ही एक भगवान् ऋषभदेव नेत्र चिकित्सालय भी चलता है |
29 अगस्त 2003 में टाइम्स ऑफ इंडिया में ASI की एक रिपोर्ट का प्रकाशन हुआ था जिसके अनुसार यहाँ खुदाई में जैन मूर्तियां प्राप्त हुईं थीं ।
वर्तमान में प्रधानमंत्री मोदी जी और मुख्यमंत्री योगी जी के अथक परिश्रम से आज अयोध्या नगरी पुनः जीवंत हो उठी है । आशा है वहाँ की प्राचीन जैन संस्कृति भी पुनः अपने गौरव को प्राप्त करेगी –
धण्णो णव अयोज्झा उसह-भरह-बाहुबली-अजिय-सुमइ ।
पवित्तो खलु जम्मभूमि अहिणंदण-अणंत-रामो य ।।
अर्थात्
यह नई अयोध्या धन्य है जो प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव,उनके पुत्र भरत (जिनके नाम पर देश का नाम भारत हुआ )तथा बाहुबली ,द्वितीय तीर्थंकर अजितनाथ,चतुर्थ तीर्थंकर अभिनन्दननाथ,पंचम तीर्थंकर सुमतिनाथ ,चौदहवें तीर्थंकर अनंतनाथ तथा भगवान् श्री राम की पवित्र जन्मभूमि है ।