प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और कांग्रेस नेता राहुल गांधी को एक नेक सलाह दी गई। राष्ट्रीय महत्व की इस सलाह का उद्देश्य आरोप-प्रत्यारोप से देश में उत्पन्न संशय की स्थिति समाप्त करना और सत्य की स्थापना था। यह सलाह उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति मदन बी.लोकुर, दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एपी शाह और प्रतिष्ठित अंग्रेजी दैनिक द हिन्दू के पूर्व प्रधान सम्पादक एन. राम ने दी थी। उन्होंने अपने पत्र के माध्यम से मौजूदा लोकसभा चुनावों के दौरान गैर-व्यावसायिक और गैर-पक्षपातपूर्ण मंच पर सार्वजनिक बहस में भाग लेने का अनुरोध किया। पत्र में कहा गया था कि इस तरह की सार्वजनिक बहस न केवल जनता को शिक्षित करने, बल्कि एक स्वस्थ और जीवंत लोकतंत्र की सच्ची छवि पेश करने में भी एक बड़ी मिसाल कायम करेगी। तीनों ने प्रधानमंत्री मोदी और राहुल गांधी से आग्रह किया कि यदि उनमें से कोई भी भाग लेने के लिये उपलब्ध नहीं है तो बहस के लिये एक प्रतिनिधि को नामित करें। राहुल गांधी ने सार्वजनिक बहस के इस न्योते को उस वक्त स्वीकार कर लिया जब एक आयोजन में शामिल एक व्यक्ति ने इस बारे में उनसे सवाल पूछा। वे लखनऊ स्थित इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में शुक्रवार को समृद्ध भारत फाउंडेशन के राष्ट्रीय संविधान सम्मेलन में अपने उद्बोधन के बाद श्रोताओं के सवालों का जवाब दे रहे थे। कांग्रेस नेता ने बाद में ट्वीट भी किया कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिये प्रमुख दलों का एक मंच से अपना विज़न देश के समक्ष रखना एक सकारात्मक पहल होगी। कांग्रेस इस पहल का स्वागत करती है और चर्चा का निमंत्रण स्वीकार करती है। देश प्रधानमंत्री जी से भी इस संवाद में हिस्सा लेने की अपेक्षा करता है। प्रधानमंत्री से सीधी परिचर्चा के सवाल पर राहुल ने अपनी सहमति व्यक्त करने के साथ यह भी कह दिया था, “मैं प्रधानमंत्री को जानता हूं, वह मुझसे परिचर्चा नहीं करेंगे”।
राहुल गांधी का अनुमान सही निकला। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से न तो इस निमंत्रण को अभी तक स्वीकार किया गया और न ही अस्वीकार। पर भारतीय जनता पार्टी के अन्य नेताओं के बयान आने शुरू हो गये, इन बयानों की भाषा सुसंस्कृत नहीं कही जा सकती। इनमें कहा गया कि राहुल गांधी तो प्रधानमंत्री पद का चेहरा तक नहीं हैं। भाजपा के फायरब्रांड नेता और सांसद तेजस्वी सूर्या ने कहा कि राहुल गांधी कौन हैं, जिनसे प्रधानमंत्री को बहस करनी चाहिये। केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कटाक्ष करते हुए पूछा कि जो पीएम मोदी के बराबर में बैठकर बहस करना चाहता हैं, मैं पूछना चाहती हूं कि वह इंडी गठबंधन (भाजपा इंडिया गठबंधन को इंडी कह कर पुकारती है) के पीएम पद के उम्मीदवार हैं क्या? स्मृति ईरानी ने यह भी कहा कि जिस व्यक्ति के पास भाजपा के साधारण कार्यकर्ता के खिलाफ चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं है, उसे किसी तरह के घमंड करने से बचना चाहिये। वे यहां तक ही नहीं रुकीं। उन्होंने सबको चुनौती दे डाली कि आप अपना चैनल पिक करिये, एंकर चुनिये, मुद्दा चुनिये, स्थान चुनिये और तारीख चुनिये, दोनों भाई बहन एक तरफ और भाजपा के एक प्रवक्ता एक तरफ। फिर दूध का दूध और पानी का पानी वहीं हो जाएगा। स्मृति ईरानी ने कहा कि कांग्रेस पार्टी मुद्दों से भाग रही है। अगर मुद्दों पर बात करने का दम है तो इनके लिए सुधांशु त्रिवेदी जी ही काफी हैं। एक तरफ दोनों भाई-बहन और एक तरफ त्रिवेदी जी। फिर सब पता चल जायेगा।
राहुल गांधी अपने चुनाव अभियान में दलित-पिछड़ो, आदिवासी व गरीबों को मिलाकर 90 प्रतिशत लोगों की उपेक्षा का मुद्दा उठा रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार, नौकरशाही, उद्योग, प्राइवेट सेक्टर, न्यायपालिका व अन्य प्रमुख क्षेत्रों में उनका स्थान नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी को यदि देश को सुपर पावर बनाना है, तो वह इन 90 प्रतिशत के बिना नहीं होगा। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अपनी चुनाव सभाओं में कहते हैं कि मोदी प्रधानमंत्री नहीं, 21वीं सदी के राजा हैं। उन्हें कैबिनेट, संसद व संविधान से कुछ लेना-देना नहीं। वह अपने मन से निर्णय लेते हैं। उनके पीछे दो-तीन फाइनेंसर हैं। राजा की असली ताकत उनके पास है। देश में बहुत से अनपढ़ राजा भी हुये हैं, जिनमें अहंकार नहीं था। वह लोगों की बात सुन लेते थे। मोदी किसी की नहीं सुनते हैं। मोदी कहते हैं कि वह संविधान को रद्द नहीं करना चाहते। मगर, सीबीआई-ईडी का राजनीतिक प्रयोग संविधान पर आक्रमण है। सभी संस्थानों में आरएसएस के लोगों का रखा जाना, नोटबंदी, बिना सेना की सहमति के अग्निवीर योजना शुरू करना भी संविधान पर हमला है। जातीय गणना की पैरवी कर रहे राहुल कहते हैं कि यह सामाजिक सच सामने आना चाहिये। वे कहते हैं,” भारत जोड़ो यात्रा के दौरान विभिन्न वर्ग के लोगों से मिलने के बाद मेरा नजरिया बदला है। मैं स्वयं को भुला चुका हूं, मुझे लगता है कि अब बस मैं जनता की आवाज हूं। कुछ लोग सुबह उठकर यही सोचते हैं कि उन्हें सत्ता कैसे मिलेगी। कुछ लोग तैयार होकर पहले सेल्फी लेते हैं। मेरी तकलीफ दूसरी है। राजनीति मेरे लिये एक औजार है और सोचता हूं कि जनता की मदद के लिये इसका उपयोग कैसे करूं”। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राहुल गांधी के इन आरोपों का सम्यक उत्तर देने और अपना पक्ष सही और श्रेष्ठ साबित करने का अवसर गवां कर भारतीय जनता पार्टी की चुनावी संभावनाओं को जहां नुकसान पहुंचाया है, वहीं वे राजनीति में सौहार्दपूर्ण और कटुतारहित वातावरण के निर्माण से दूर रहने की कोशिश करते प्रतीत होते हैं।