जब से अयोध्या में राम मंदिर बना है तब से हर कोई राम-राम कर रहा है! जब राम मंदिर का निर्माण कार्य शूरू हुआ था, तभी से लोगों में उत्साह था! ईसी को लोकर प्रो अनेकांत कुमार जैन ने अपने साथ हुए एक अनोखे घटना को बताया है!
अनेकांत कुमार जैन ने कहा कि उन्हे पैदल चलना अच्छा लगता है! इसलिए वे मंदिर दर्शन, अस्सी घाट भ्रमण जैसे कई मौकों पर ज्यादातर पैदल ही भ्रमण करते हैं! इसी कड़ी में वे जब बनारस गए थे, तब उनके साथ एक अनोखी घटना घटी थी! जब अनेकांत कुमार जैन इसी तरह भ्रमण करते हुए भेलूपुर से घर लौट रहा थे तब एक रिक्शे वाले ने उनके पिछे आकर कहा बाबू जी आपको कहाँ जाना है ? तो उन्होंने कहीं नहीं बोलकर मना कर दिया! तब उस मस्त मौला मात्र धन से दरिद्र और तन पर फटे मैले अविन्यासित वस्त्र पहने किन्तु दिल के राजा रिक्शे वाले ने मेरे जबाब के प्रति उत्तर में कहा बनारस में कहीं नहीं कुछ नहीं होता! मेरी सवारी मत बनिये पर झूठ तो मत बोलिये!
उसका मनोवैज्ञानिक दबाव मेरे पैदल चलने के धैर्य को तोड़ता सा प्रतीत हो रहा था! फिर मैंने उसे भगाने के लिए कहा कि गुरुधाम पर राम मंदिर तक जाना है! उसके पीछे मेरा घर होने से उसे लैंडमार्क बतला कर पूछा कितने पैसे लोगे? तो उसने अपना किराया 50 रूपए बताया! जिसके बाद – ज्यादा हैं कहकर, वो भाग जाए इस इरादे से मैंने उससे बीस रुपये की पेशकश की! वो तैयार नहीं हुआ और वापस चला गया!
लेकिन, कुछ दूर जाने के बाद वह वापस आया और मुझसे कहने लगा – आपने किराया बहुत कम बताया लेकिन, वापस जाकर मैंने सोचा कि आप राम मंदिर जा रहे हैं और अगर मैं चंद पैसों की खातिर मंदिर ले जाने से मना कर दिया तो राम जी क्या सोचेंगे, आप जितने भी पैसे दें-दे लेकिन मेरे रिक्शे पर बैठ जाएं, नहीं तो पाप हो जाएगा! उसकी सरलता, समर्पण और भक्ति देख मैं उसके वशीभूत हो गया और रिक्शे पर बैठ गया!
मुझे भारत में धर्म सुरक्षित दिखने लगा
ठीक राम मंदिर के सामने उसने रिक्शा रोक दिया! मेरे लिए अब वह अनुसंधान का विषय बन चुका था! अनजाने साधर्मी से भी कैसा वात्सल्य होना चाहिए, मुझे अब समझ आ रहा था! मुझे भारत में धर्म सुरक्षित दिखने लगा था! मैंने उसे पचास का नोट दिया,उसने बिना किसी संकोच के मुझे तीस रुपये वापस दिए, मैंने ले लिए! उसने कहा आज आपके कारण मुझे भी प्रभु के दर्शन का अवसर मिल गया!