पिछले कुछ वर्षों से हिन्दुत्व की हवा इतनी तेजी से बह रही है कि उसने सभी को अपनी चपेट में ले लिया है। इसका सबसे अधिक प्रभाव जैनत्व पर पड़ा है। यह असर इतना गहरा हुआ कि सामान्य जैन बन्धु ही नहीं बल्कि जैन सन्त भी इसकी चपेट में आ गए हैं और जाने या अनजाने में वे भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हिन्दुत्व के गुणगान में लग गए हैं, बिना यह समझे कि इससे जैनत्व को कितना नुकसान हो रहा है। ऐसी स्थिति में आशंकित होना स्वाभाविक है कि कहीं जैनत्व के अस्तित्व को तो खतरा नहीं हैं।
हिन्दुत्व की अलग-अलग मौके पर अलग-अलग तरीके से व्याख्या की जाती रही हैं। जिस समय जिस व्याख्या से राजनैतिक लाभ हो वैसी ही व्याख्या कर दी जाती हैं। हिन्दुत्व को एक बार हिन्दू संस्कृति से जोड़ा जाता है तो अगली बार गाय, गंगा और गीता से जोड़ा जाता है। कभी वैदिक गणित और संस्कृत से जोड़ा जाता है तो कभी गैर-भारतीय धर्मों को हिन्दुत्व के लिए खतरा बताकर भावात्मक तरीके से उकसाया जाता है।
हम जैन अहिंसा के पुजारी हैं, अतः जहाँ भी जीव दया की बात आती है तो हम भावात्मक तरीके से उस ओर आकर्षित हो जाते हैं और जो इस मुद्दे को उठाता है, हम उसके प्रशंसक हो जाते हैं। हम यह सोच भी नहीं पाते कि जो कुछ कहा जा रहा है उसके पीछे सत्यता क्या है, उसके प्रति गम्भीरता है भी या नहीं। या फिर मात्र भावात्मक तरीके से ब्लैकमेल तो नहीं किया जा रहा है। जैनों को सबसे अधिक जो बात लुभाती है वह है गौ- रक्षा की। लेकिन इसकी वास्तविकता को समझना होगा।
जैनत्व को कैसे परिभाषित किया जाय, यह एक प्रश्न हो सकता है। मैं समझता हूँ, कि जैन सिद्धांतों, जैन तीर्थों और संस्थाओं का बिना किसी हस्तक्षेप के संरक्षण व संवर्धन जैनत्व में निहित हैं। लेकिन हिन्दुत्व की तेज हवा में हमारे सैद्धांतिक विश्वास कमजोर पड़ने लगे हैं; हमारे जैन तीर्थों व संस्थाओं को नुकसान पहुँचाया जा रहा है। हिन्दुत्व और जैनत्व में अन्तर स्पष्ट है, उसे भी समझना होगा। हिन्दुत्ववादी कहते हैं कि मात्र गौ माता की रक्षा करो जबकि जैनधर्म कहता है कि अकेले गाय की नहीं बल्कि सभी जीवों की (जिसमें बैल, सांड़, आदि तथा सभी छोटे जीव भी सम्मलित हैं) रक्षा करो। हिन्दुत्ववादी कहते हैं कि मात्र गंगा बचाओ, जैन कहते हैं कि जल भी जीव है अतः मात्र गंगा को ही नहीं बल्कि सभी नदियों की रक्षा करो। हिन्दुत्ववादी कहते हैं कि गीता सर्वोपरि धार्मिक ग्रंथ है, जैन कहते हैं कि जैनागम, देव व गुरु का श्रद्धान ही सम्यक् दर्शन है। जैन कहते हैं कि हमारे तीर्थ स्थानों व संस्थाओं में हस्तक्षेप न हो, हिन्दुत्ववादी कहते हैं कि जैन भी हिन्दू धर्म का हिस्सा है, अतः हिन्दुओं का हस्तक्षेप सही हैं।
कोई कह सकता है कि चलो आज गायों की रक्षा की बात कही जा रही है, कल को सब जीवों की रक्षा की बात भी कही जायेगी। अतः हमको गौ-रक्षा का समर्थन करना चाहिए। बस इसी बात पर जैन लोग पिघल जाते हैं बिना यह समझे कि वास्तविकता वह नहीं है जो कहा जा रहा है। हमें मात्र भावात्मक तरीके से अपनी ओर आकर्षित किया जा रहा है। वास्तविकता यह है कि राजनेता गौ-रक्षा को लेकर भी तहे-दिल से बिल्कुल भी गम्भीर नहीं हैं। यदि वे गम्भीर होते तो अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग बयान क्यों देते। जहाँ अहिंसक जैन अधिक हैं वहाँ उन्हें अपने खेमें में लेने के लिए गौ-रक्षा की बात कह दी जाती है। दूसरे दिन अन्य राज्यों के मुखिया गौ-मांस खाने वालों को खुश करने के लिए कहते हैं कि राज्य में गौ मांस की कमी नहीं होने दी जाएगी। उसके कुछ दिन बाद कह दिया जाता है कि गौ-मांस प्रतिबन्ध पर पुनर्विचार किया जाएगा। इसके पश्चात् केन्द्रिय स्तर पर घोषणा कर दी जाती है कि चमड़े के व्यापार को बढ़ाने के लिए चमड़े पर टैक्स कम किया आएगा, तथा मांस के निर्यात को बढ़ाया जाएगा। यह मात्र दोगलापन नहीं तो और क्या है? अगर राजनेता इस मामले में गम्भीर हैं तो एक ही बात वर्षों तक नहीं कहते? अहिंसक समाज को लुभाने के लिए गौ-रक्षा की बात कह दो; जबकि वास्तविकता यह है कि अधिक विदेशी धन पाने के लालच में मांस और चमड़े को बढ़ावा दिया जा रहा है।
जैन संतों की तरफ से एक बार यह प्रयास किया गया कि सब लोग मांस निर्यात के खिलाफ आवाज उठाएं। एक नारा भी दिया कि ‘मांस निर्यात बन्द करो’। सरकारें बदलीं, लेकिन इस संदर्भ में परिस्थितियाँ नहीं। बल्कि मांस और चमड़े का निर्यात और अधिक बढ़ गया है। जब गौवंश का वध नहीं हो रहा है तो और अधिक गौमांस कहाँ से आ रहा है?
हिन्दुवादी वैदिक गणित की बात तो कहते हैं लेकिन जैनाचायों द्वारा गणित के विकास में किये गए योगदान का नाम तक नहीं लेते। जो गणित के अध्येता हैं वे इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि आचार्य वीरसेन, श्रीधराचार्य, महावीराचार्य आदि अनेक जैन आचार्यों का गणित के विकास में बहुमूल्य योगदान रहा है, वैदिक गणित से कहीं बहुत अधिक।
यदि हम जैन तीर्थों एवं मन्दिरों की बात करें तो आज उन पर भी राजनेताओं की मौन स्वीकृति के कारण हिन्दुओं द्वारा अनधिकृत कब्जा किया जा रहा है। जैन तीर्थ एवं मंदिर हमारी धार्मिक एवं सांस्कृतिक धरोहर हैं। पिछले लगभग 20-30 सालों में हमारे देखते-देखते गुजरात के गिरनार तीर्थ पर हिन्दुओं का लगभग पूरा कब्ज़ा हो गया है। जबकि कानूनी व्यवस्था यह है कि सन् 1947 में तीर्थों की जैसी स्थिति थी वैसी ही रखी जाए। गुजरात के ही पालीताना तीर्थ के बारे में कोई सपने में भी नहीं सोच सकता कि कभी कोई हिन्दू उस पर अपने अधिकार की बात करेगा। लगभग 2-3 माह पूर्व (जून 2017 में) हिन्दूवादी संगठनों ने आंदोलन किया तथा पालीताना में मोर्चा निकाला कि यह मात्र जैनों का ही नहीं हैं हिन्दुओं का भी है, अतः इस पर उनका भी अधिकार है। बिहार के मंदारगिरि का भी यही हाल हैं। अब तो तीर्थराज शिखरजी भी इसकी चपेट में आ रहा है।
अहमदाबाद में पिछले लगभग 2 वर्ष पूर्व सड़क चौड़ी करने के नाम पर साबरमती के एक प्राचीन चिन्तामणी पार्श्वनाथ श्वे. जैन मन्दिर का आधा हिस्सा तुड़वा दिया गया, जबकि इसी दौरान इस मंदिर के निकट सड़क के किनारे तीन नये हिन्दू मन्दिरों का निर्माण हो गया है। उनमें से एक तो काफी बड़ा बना लिया है। साबरमती से ही थोड़ी दूर पर पार्श्वनाथ नगर में एक पार्श्वनाथ श्वे. मन्दिर है। यह लगभग 40 वर्ष पुराना है। पिछले लगभग 2 वर्ष में इसके ठीक सामने हिन्दूओं ने एक हनुमान जी मन्दिर बना दिया है, वह भी अनधिकृत। जैन मन्दिर में मात्र प्रवेश करने भर तक की जगह छोड़ी है। लाउडस्पीकर इतना तेज चलता है कि जैन लोग ठीक से पूजा-अर्चना भी न कर सकें। यह तो कुछ ही उदाहरण हैं, और भी अनेकों हो सकते हैं। यह सब उन क्षेत्रीय राजनेताओं की स्वीकृति से होता है जो हिन्दुत्व के पक्षधर हैं।
जैनों की अनेकों शैक्षणिक संस्थायें भी हैं। हॉलाकि जैनों को अल्पसंख्यक माना गया है, अतः इन शैक्षणिक संस्थाओं को चलाने का स्वतंत्र अधिकार जैनों को मिलना चाहिए। लेकिन इन शिक्षण संस्थाओं में से अधिकतर में जैन प्राध्यापक / प्राचार्य तक नहीं हैं, कहीं हम जैनों की कमी के कारण और कहीं हिन्दू पक्षपात के कारण।
इतना सब होने पर भी हम भोले-भाले जैन हिन्दुत्व की बात आने पर रोमांचित हो जाते हैं, और जोर-और से तालियाँ पीटते हैं, साथ ही हिन्दुत्व का गुणगान करते भी नहीं थकते। गौ, गंगा और गीता की बात आती है तो हम उस बात में बह जाते हैं। आजकल व्हाट्सएप का जमाना है। मैंने पाया है कि कुछ जैन अपने व्हाट्सअप की दैनिक शुरूआत ही ‘जय श्री राम’, ‘जय गौ माता’, ‘जय गंगा’ आदि से करने लग गए हैं और ‘जय जिनेन्द्र’ या ‘जय महावीर’ भूल गए हैं। हिन्दू त्यौहारों, जैसे कृष्ण जन्माष्टमी, नवरात्रि आदि पर भी भक्ति प्रदर्शित करते हैं। गणेशजी को तो अनेकों ने अपना लिया है। इस तरह धीरे-धीरे जैन लोग हिन्दूधर्म की ओर आकर्षित हो रहे हैं। जैन लोग जैन बने रहेंगे तो जैन धर्म बचेगा, जैनत्व बचेगा। यदि ये लोग ही जैनत्व से विमुख हो गए तो जैन धर्म कैसे बचेगा।
जैन समाज के लोग तो भोले हैं, लेकिन दुःख तो तब होता है जब जैन संत भी हिन्दुत्व को आशीर्वाद देते नहीं थकते। राजनेता उनके साथ फोटो खिचवा लेते हैं तो हम तथा हमारे संत खुश हो जाते हैं। वस्तुतः राजनेता तो अपना राजनैतिक स्वार्थ सिद्ध करते हैं इन फोटो को समाचार पत्र और टेलीविजन पर दिखाकर; और हम समझते हैं कि वे जैनधर्म के शुभचिंतक हैं।
कभी जैनों को यह कह कर डराया जाता है कि मुसलमान पूरे देश पर कब्जा कर लेंगे तो जैन धर्म नष्ट हो जाएगा। मात्र हिन्दू ही जैन धर्म की रक्षा करते हैं। इतिहास गवाह है कि जैनों का जितना अधिक नुकसान हिन्दुत्ववादी तीव्र प्रवाह के कारण हुआ उतना मुसलमान शासकों द्वारा या अन्य आक्रान्ताओं द्वारा नहीं हुआ। चाहें वह समय शंकराचार्य का हो या पं. टोडरमल का, चाहे वह बद्रीनाथ तीर्थ हो या तिरूपति बालाजी (बदरीनाथ में ऋषभदेव की मूर्ति है जबकि तिरूपति में नेमिनाथ भगवान् की) सर्वाधिक नुकसान हिन्दू अतिवादिता के कारण हुआ। बौद्ध अतिवादिता का भी जैनों को नुकसान उठाना पड़ा है, निकलंक उसके एक उदाहरण हैं। आज भी स्थिति वैसी ही है, तरीका बदल गया है।
आए दिन इतिहास की पाठ्य पुस्तकों में भी छेड़छाड़ होती रहती है। कभी जैन धर्म को हिन्दू धर्म का हिस्सा बता दिया जाता है, कभी भगवान् महावीर को जैन धर्म का संस्थापक। कभी भगवान् महावीर का गलत परिचय छप जाता है तो कभी जैन सिद्धान्तों में परिवर्तन कर दिया जाता है, जैन सिद्धान्तों को विस्तार पूर्वक नहीं छापा जाता है। यह सब होता है पुस्तक लिखने वाले की हिन्दूवादी मानसिकता और हिन्दुवादी संगठनों के समर्थन के कारण। आए दिन जैन बुद्धिजीवी इन मुद्दों पर अपनी आवाज उठाते रहते हैं। कभी आंशिक सफलता मिल जाती है और कभी नहीं।
आप किसी भी राजनैतिक पार्टी के समर्थक हों, आप किसी भी राजनेता को वोट दें, इससे किसी को क्या आपत्ति। यह आपका अपना व्यक्तिगत् अधिकार है। लेकिन यह सोचकर न करें कि वह जैनत्व का हितैषी और शुभचिंतक है। वह तो हमेशा बहुसंख्यक के साथ ही रहेगा, यदि ऐसा नहीं होता तो जैन तीर्थं व मन्दिर आज सुरक्षित होते उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुँचाया जाता। इतिहास की पाठ्य पुस्तकों में जैन धर्म के बारे में न्यायोचित कथन होता। सिर्फ गौ मांस पर ही नहीं बल्कि सभी जीवों के मांस पर रोक की बात कही जाती, कम से कम मांस निर्यात बन्द करने की बात तो उठती, जैसा कि हमारे जैनाचार्य ने अपील की थी तथा एक नारा भी दिया था- मांस निर्यात बन्द करों। मांस निर्यात कम होने के बजाय आज वह दिनोदिन बढ़ रहा है।
मेरा सम्पूर्ण जैन समाज से विशेषकर सभी सम्प्रदायों के जैन सन्तों से विन्रम निवेदन है कि परिस्थितियों को समझें तथा जैनत्व की रक्षा का यथा योग्य प्रयास करें। राजनेताओं के साथ फोटो प्रकाशित हो जाने भर से संतुष्ट न हो जायें, ऐसी फोटोओं से गलत सन्देश जाता है कि सन्त महात्मा इनके विचारों और क्रियाकलापों से सहमत हैं। मैं तो निवेदन करूंगा कि इससे बचें तो और भी अच्छा है। किसी भी प्रवाह में जैनत्व को बह न जाने दें। जैनों में जैनत्व की भावना जीवित रहेगी तभी जैन धर्म भी सुरक्षित रह सकेगा। जैन संतों से विन्रम अनुरोध है कि वे जैन लोगों में जैनत्व की भावना को प्रबल करने के प्रयास करें; उन्हें जैन धर्म, जैन गुरु तथा जैन तीर्थंकरों के प्रति आकर्षित होने के लिए प्रेरित करें।