भारत को सोने की चिड़िया यूँ ही नहीं कहा जाता है, जिसके कारण राजाओ में बहुत युद्ध हुए, यंहा तक कि अंग्रेजो ने भी भारत से सोना लूट कर अपने देश भेजा और अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत किया. मुगलों ने भी भारत को खूब लूटा और शासन भी किया. उसके बावजूद देश में सोने की कमी नहीं है, हमारे देश में कई जगह सोना खजाने के रूप में राजाओं द्वारा गुप्त स्थान में छुपा दिया गया. अगर सारा गुप्त सोना मिल जाए तो, दुनिया में मजबूत होती भारतीय अर्थव्यवस्था को और मजबूत होने में बड़ा योगदान होगा. आइए जानते है, उन्ही गुप्त सोने के खजानो में एक बड़े खजाने की रहस्यमय कहानी.
बिहार के नालंदा जिले के राजगीर में स्थित ‘सोन भंडार’ गुफा में वर्षों पुराना खजाना छुपा हुआ है. माना जाता है कि ये हर्यक वंश के प्रथम राजा बिम्बिसार की पत्नी ने छिपाया था. इतिहासकारों द्वारा इस खजाने को इस गुप्त गुफा में रखने वालो के पीछे के इतिहास को दो भागो में बांटा है, लेकिन अधिकतर इतिहासकार इसे हर्यक वंश के संस्थापक बिम्बिसार से जोड़ते है. हम दोनों की चर्चा करेंगे. लेकिन यह सत्य है कि इसमें सोने का बड़ा खजाना छुपाया हुआ है, चाहे दोनों में से किसी ने भी छुपाया हो.
इतिहासकारों के अनुसार, बिम्बिसार हर्यक वंश के संस्थापक थे और 543 ईसा पूर्व में 15 साल की छोटी उम्र में मगध के राजा बन गए थे. वह सोना चांदी के बहुत शौक़ीन थे, उनकी एक रानी भी उनकी तरह सोने चांदी के संग्रह की बहुत शौक़ीन थी. उनके पास सोने का बहुत बड़ा भंडार हो गया था. उनका एक पुत्र हुआ अजातशत्रु, जिसने सत्ता की लालसा में अपने ही पिता बिम्बिसार को कैद में डाल दिया. बिम्बिसार की मौत में एक भ्रांति है कि उनकी अजातशत्रु ने हत्या करवा दी थी, किसी का कहना है कि उन्होंने कैद से परेशान आकर आत्महत्या कर ली थी. अजातशत्रु अपने पिता के द्वारा संग्रह किए गए सोने के भंडार को हथियाना चाहता था, लेकिन बिम्बिसार की उसी रानी ने जो राजा को सोना संग्रह करने में मदद करती थी, उनके सोने के संग्रह को गुफा बनवाकर उसमे रखवा दिया. जिसका राज आज तक कोई नहीं जान पाया है.
इस सोन भंडार गुफा के अंदर दो कमरे हैं. अंदर दाखिल होते ही 10.4 मीटर लंबा और 5.2 मीटर चौड़ा एक कमरा है. इसकी ऊंचाई तक़रीबन 1.5 मीटर है. कहा जाता है इस कमरे में खजाने की रक्षा करने वाले सिपाही तैनात रहते थे. इसी कमरे के अंदर से एक और कमरा है, जो एक बड़ी चट्टान से ढका हुआ है. लेकिन, इस दरवाजे को खोलने में अब तक कोई कामयाब नहीं हुआ. गुफा की दीवार पर शंख लिपि में कुछ लिखा हुआ है. ऐसा माना जाता है कि इसी में सोन गुफा भंडार के खजाने का रहस्य छिपा हुआ है.
ब्रिटिश भारत में भी इस रहस्यमयी खजाने तक पहुंचने की कोशिश की गई थी. खजाने वाले कमरे को खोलने के लिए तोप के गोले का इस्तेमाल किया गया. फिर भी इसे खोलने में अंग्रेज़ असफल रहे. कहा जाता है कि आज भी इस गुफा पर दागे गए गोले के निशान मौजूद हैं.
इस सोन भंडार को देखने के लिए दूर दूर से लोग पर्यटक के रूप में आते है और खजाने के रहस्य को जानने की कोशिश करते है.
इस गुफा के खजाने वाले दरवाजे को कोई नहीं खोल पाया है, आज तक यह गुफा विज्ञान और इतिहासकारों के लिए पहेली बनी हुई है.
गुफा के खजाने से जुड़ी एक कहानी महाभारत काल से जुड़ी है. वायु पुराण के अनुसार हर्यक वंश के शासन से करीब 2500 साल पहले मगध पर शिव भक्त जरासंध के पिता वृहदरथ का शासन था. वृहदरथ के बाद जरासंध सम्राट बना. चक्रवर्ती सम्राट बनने का लक्ष्य लेकर वह 100 राज्यों को पराजित करने निकल पड़ा. जरासंध ने 80 से अधिक राजाओं को पराजित कर उनकी संपत्ति पर कब्जा कर लिया.
वायु पुराण के अनुसार इस संपत्ति को उसने विभारगिरि पर्वत की तलहटी में गुफा बनाकर छिपा दिया. जरासंध 100 राजाओं को पराजित करने के लक्ष्य पर पहुंचता, इसके पहले पांडवों ने उसे युद्ध के लिए आमंत्रित किया. जरासंध का भीम से 13 दिनों तक युद्ध चला. भगवान श्रीकृष्ण की बताई तरकीब से भीम ने जरासंध का वध कर दिया. उसकी मौत के साथ गुफा में रखे उसके खजाने का राज भी दफन हो गया.
अधिकतर विद्वान इतिहासकारो का मत है कि यह खज़ाना बिम्बिसार हर्यक वंश का ही है.