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आज हम एक ऐसे महान और प्रेरणादायक क्रिकेटर के जीवन के संघर्ष की चर्चा करेंगे, जिसे अपना 2 रन बनाने में पुरे छह साल लग गए, लगातार मिलती जा रही असफलता भी उनके दृढ़ संकल्प को हरा नहीं पायी. अपनी कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प के दम पर उन्होंने क्रिकेट में बड़ी सफलताएं हासिल की. जिसने पूरी दुनिया को जीवन में कभी हार न मानने की सच्ची सीख दी है. उस महान खिलाडी का नाम है मार्वन अटापट्टू. आइए जानते है उनके जीवन के संघर्ष और सफलता की कहानी जो कि हम सबके लिए प्रेरणादायक है.


मार्वन अटापट्टू का जन्म 22 नवंबर, 1970 को श्रीलंका के केलुटारा में हुआ. इस महान क्रिकेटर ने श्रीलंका की क्रिकेट टीम में अपनी जगह बनाने के लिए कड़ी परिश्रम किया, वे एक दायें हाथ के बल्लेबाज थे.

मार्वन अटापट्टू की प्रेरणादायक जीवनी


आज जंहा श्रीलंका क्रिकेट बोर्ड को भारी आर्थिक समस्याओ का सामना करना पड़ रहा है, उनकी क्रिकेट टीम को विश्व में अपनी पहचान बनाने में काफी संघर्ष करना पड़ रहा है, वही एक ऐसा भी दौर था जब श्रीलंका क्रिकेट टीम का विश्व में अपना एक पूरा दबदबा हुआ करता था. उनके खिलाडी प्रतिद्वंदी के घर में घुसकर अर्थात घरेलु मैदान में जाकर प्रतिद्वंद्वी को बुरी तरह परास्त कर देते थे. उस समय श्रीलंका क्रिकेट टीम में एक से बढकर एक दिग्गज खिलाडी थे. अर्जुन रणतुँगा, अरविंद डी सिल्वा, सनथ जयसूर्या, मुथैया मुरलीधरन जैसे महान खिलाडियों ने श्रीलंका क्रिकेट टीम का स्वर्णिम इतिहास रच डाला था, मार्वन अटापट्टू का नाम भी श्रीलंका टीम को उच्च स्तर पर पहुचाने में बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है. वह ऐसे महान खिलाड़ी है जिन्होंने न केवल श्रीलंका क्रिकेट टीम को विश्व स्तर पर पहचान दिलाई अपितु उनके जीवन के संघर्ष ने हम सबको जीवन में कभी हार ना मानने की सीख दी है.


क्रिकेट की शुरुवात उनके स्कूली समय से ही महिंद्रा कॉलेज से खेलने के दौरान शुरू हो गयी थी . जंहा उन्होंने क्रिकेट की बारीकियो को समझना शुरू किया. फिर कोलोंबो में आकर रहने लगे और यंहा से कोच पी डब्लू परेरा के सानिध्य में क्रिकेट की बारीकियो को सीखा और क्रिकेट में महारत हासिल की. इस दौरान वह कई क्रिकेट क्लबो से भी खेलते रहे. उनके कड़े परिश्रम के चलते उन्हें श्रीलंका की घरेलु टीम में भी खेलना का मौका मिला.


घरेलु क्रिकेट में प्रथम श्रेणी(ऍफ़ सी) में 228 मैच जिसमे कुल रन 14591 और लिस्ट ए में 329 मैच जिसमे 10802 रन बनाए. जिसमे उनका औसत 50 रन था. उनके इस शानदार स्कोर की चर्चा श्रीलंका के क्रिकेट चयनकर्ताओ के बीच होने लगी,परिमाणस्वरुप महज 20 वर्ष की आयु में उनका श्रीलंका की टेस्ट टीम में चयन हो गया.


1990 के टेस्ट मैच में इंडिया के विरुद्ध 54 रन बनाकर, श्रीलंका की टीम के 5 खिलाड़ी आउट हो गए और मार्वन अटापट्टू ने सातवे नम्बर पर मौर्चा संभाला, सबको उनसे बहुत उम्मीद थी. लेकिन वह इस मैच में अपना खाता तक नहीं खोल पाए, उनकी पूरी टीम 82 रन में सिमट कर रह गयी. उनका प्रदशर्न काफी निराशाजनक रहा.


दूसरी पारी में मार्वन अटापट्टू छठवे नंबर में खेलते है और बिना खाता खोले फिर से शुन्य में आउट हो जाते है. चंडीगढ़ में हुए इस मैच को भारत एक इनिंग और 8 विकेट से जीत लेता है. हार की पूरी गाज मार्वन अटापट्टू पर गिरती है. इस मैच के बाद उनको टेस्ट टीम से बाहर कर दिया जाता है.


अंतराष्ट्रीय टीम से निकाले जाने के बाद वह फिर से घरेलु टीम में वापसी कर कड़ी मेहनत करने लगे. जिसके कारण उन्होंने धमाकेदार बल्लेबाजी करनी शुरू कर दी. उनके घरेलु टीम में अच्छे प्रदर्शन को देखते हुए चयनकर्ता उनका फिर से अंतराष्ट्रीय टेस्ट टीम में चयन करते है. अगस्त 1992 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ मार्वन अटापट्टू को अंतिम 11 में शामिल किया गया. पहली पारी में बल्लेबाजी करने आये मार्वन अटापट्टू 0 रन में आउट हो गए. दूसरी पारी में केवल 1 रन बनाकर आउट हो गए. इस मैच के बाद अटापट्टू को अंतराष्ट्रीय टेस्ट मैच से फिर से बाहर कर दिया जाता है.


अंतराष्ट्रीय क्रिकेट मैच में दो अवसर मिलने के बावजूद अच्छा प्रदर्शन ना कर पाने के कारण वो तनिक भी निराश नहीं हुए, बल्कि और भी कड़ी मेहनत करते रहे. लगभग 17 महीने तक उन्होंने क्रिकेट क्लबो में कड़ी मेहनत की, जंहा उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया. जिसके कारण उनका तीसरी बार अंतराष्टीय टीम में फिर से चयन हो जाता है. यंहा मिले अवसर में दोनो पारी में जीरो में आउट हो जाते है. जिससे उनका करियर बर्बादी की कगार में माना जाता है, उनके परिचित और देशभर के लोग उनकी प्रतिभा में शक करने लगे. इतनी असफलताओं के बाद अधिकतर इंसान टूट जाते है और अपना मानसिक संतुलन खो बैठते है. लेकिन इस महान खिलाडी ने अंतराष्ट्रीय टेस्ट मैच में अपनी तीसरी असफलता को अपने जीवन में बाधा नहीं बनने दिया.


वह फिर से घरेलु क्रिकेट टीम में पसीना बहाने लगे, निरंतर अपने लक्ष्य की और बढते रहे. जिसके फलस्वरूप उनको फिर से श्रीलंका क्रिकेट टीम में जगह मिली.


1997 में भारत के खिलाफ मोहाली में अटापट्टू ने शानदार शतक बनाया और टीम में अपनी सम्मानीय वापसी का ऐलान कर दिया. उन्होंने जिम्बाव्वे, पाकिस्तान, इंग्लैंड के खिलाफ खेलने के अवसर को बिलकुल नहीं गवाया, उन्होंने इन मैचो में दोहरा शतक लगाकर खेल जगत में अपना एक अलग नाम बनाया.


टेस्ट टीम में मिली जीत ने मार्वन अटापट्टू को श्रीलंका की एकदिवसीय टीम में भी जगह दिला दी. उन्होंने एकदिवसीय मैच में भारत के खिलाफ बहुत शानदार प्रदर्शन किया. उन्होंने अपने शानदार प्रदर्शन को जारी रखा, जिसके फलस्वरूप उन्हें साल 2003 में श्रीलंका का कप्तान बना दिया गया. वह अपनी टीम को उच्च स्तर तक ले गए और पुरे विश्व में अपनी टीम को सम्मान दिलाया.


वह खेल जगत के ऐसे खिलाडी है जिनका जीवन हम सबको अपने जीवन में संघर्षो से हार न मानने की सीख देता है.


उनके जीवन में कुछ विवाद भी जुड़े जिनका उन्होंने अपने क्रिकेट करियर की भांति डटकर सामना किया.


मार्वन अटापट्टू ने क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद एक सफल क्रिकेट कोच की जिम्मेदारी भी निभाई. वह श्रीलंका , कनाडा और सिंगापुर के क्रिकेट कोच भी रहे.


एक दिन ऐसा भी था जब मार्वन अटापट्टू को अंतराष्ट्रीय टेस्ट टीम में अपना दूसरा रन बनाने में पुरे दो साल लगे. उन्होंने अपने अपमान और निरंतर हार को कभी अपने दृढ़ संकल्प के आगे हावी नहीं होने दिया. उनके संघर्ष और उसके बाद मिली सफलता से हम सबको सीख जरुर लेनी चाहिए.


मार्वन अटापट्टू का विवाह नेलुनी अटापट्टू से हुआ है, जो पेशे से श्रीलंकाई चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं। मार्वन और नेलुनी की दो बेटियाँ हैं।

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