वर्तमान में अपनी ओजस्वी प्रवचन शैली व गुरु संस्कारो को गौरवान्वित करने वाले जग विख्यात चतुर्थ पट्टचार्य श्री सुनिलसागर जी गुरूराज ने धर्मसभा में कहा कि जिस तरह एक कैशियर बैंक में करोड़ो का नकद लेनदेन करता है, फिर भी उस नकद का मालिक वह नही होता।एक चौकीदार बड़ी से बड़ी बिल्डिंग की हीफ़ाजत करता है, लेकिन उस बिल्डिंग का मालिक वह नही होता है| वह कैशियर व चौकीदारों का उन वस्तुओं की सम्पूर्ण क्षति पर निजी तौर पर ज्यादा ठेस नही लेता।क्योकि वो उन वस्तुओं का सिर्फ वेतनगार है।ठीक उसी तरह स्वयं का शरीर भी सिर्फ आत्मा का कवच है वेतनगार है।ये शरीर क्या,इस संसार की कोई भी वस्तु अपनी नही है सिर्फ ये निजआत्मा ही अपनी है।
व्यापार करे,कमाए लेकिन सहयोग, समर्पण व नैतिकता अवश्य होनी चाहिए। आचार्य श्री सुनिलसागर जी गुरूराज ने आगे कहा कि गुजरात के एक महान जैन दार्शनिक श्रीमद राजचन्द्र जी हुए जो कि हीरे व बहुमूल्य धातुओं के व्यापारी थे एक समय किसी थोक व्यापारी से उनका एक सौदा क्रय करने का लिखित रूप से तय हुआ कि अमुख दिन को इतनी राशि में इतना माल मिलेगा। संयोग से उस वस्तु के दाम अत्यधिक बढ़ गए। दाम भी इतने बढ़ गए कि वह व्यापारी यदि अपना सब कुछ बेच दे तो भी उस सौदे को पूर्ण नही कर सके। वह व्यापारी ईमानदार था लेकिन व्याकुल हुआ की अब मैं राजचन्द्र जी को कैसे सौदा दे पाऊंगा। पूरा का पूरा घर सम्पत्ति सबकुछ बेच कर भी सौदा पूरा नही कर पाऊंगा, अब क्या होगा?लिखित सौदे से मुझ पर केस हो जाएगा और मेरे ईमान का भी सवाल है,इस तरह वह अंदर ही अंदर घुट रहा था। फिर भी बहुत हिम्मत से ओर वक्त मांगने वह व्यापारी राजचन्द्र जी के पास गया। बड़े ही भारी मन से कहने लगा सेठ जी आपका तय सौदा मैं अभी पूरा नही कर पाऊंगा।मुझे एक -दो साल का वक्त दीजिए तो मै कैसे भी करके आपको पूरा माल पहुंचा दूंगा। राजचन्द्र जी सब समझ चुके थे,भाव की असीम वृद्धि व उसकी मजबूरी भी जान चुके थे।
अतः राजचन्द्र जी वो लिखित कागज उस व्यापारी के पास लाए और उस कागज के उसी व्यापारी के सामने टुकड़े टुकड़े करते हुए कहा-मैं राजचन्द्र दूध पी सकता हु लेकिन किसी का खून नही चूस सकता। आप बेफिक्र रहे मुझे किसी सौदे की आवश्यकता नही।आपका घर-परिवार बिक जाए, आपकी सम्पत्ति नीलाम हो जाए और आपके बच्चे भूखे रह जाए ऐसा कोई व्यापार मुझे नही मंजूर।
कोई बात नही आप भी निसंकोच कमाए और में भी अपनी आत्म प्रसन्नता के साथ कमाता जाऊँगा।
इस सत्य प्रसंग के साथ आचार्य श्री सुनिलसागर जी गुरूराज ने कहा कि व्यापार व व्यवहार में हमेशा सहयोग,समर्पण व नैतिकताएं जिंदा रखो। किसी का सम्पूर्ण लूट जाए या उसका शोषण हो जाए ऐसा अनैतिक धन न ही कमाए न ही उस तरह का व्यापार करे।