प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर हर एक इंसान, महिलाओं के योगदान को भलीभांति जानता है, फिर भी बहुत की कम पुरुष महिलाओं के हक़ के लिए आवाज उठाते है. ऐसा नहीं है कि महिलाएं, अपने हक़ के लिए पुरुष पर ही निर्भर है. किसी भी कार्य को पूरा करने में, महिलाओं में पूरी क्षमता और योग्यता होती है. आज का भारत, आधुनिक भारत है. महिलाओं को संविधान से समानता का अधिकार प्राप्त है, बावजूद इसके कुछ पुरुष प्रधान मानसिकता रखने वाले व्यक्ति, महिलाओं को समाज में आगे बढ़ने से रोकने का घिनौना काम, आज के समय में भी कर रहे है.
बहुत सी महिलाओं को घरेलु हिंसा का सामना भी करना पड़ता है, महिला ममता का रूप और शक्ति का प्रतीक होती है. उनके साथ ऐसा दुर्व्यवहार बिल्कुल ठीक नहीं है. एक पुरुष को जन्म देने वाली मां भी महिला ही होती है. बच्चे को गर्भ से लेकर जन्म देने तक कितना कष्ट सहती है एक मां. ममता का रूप और शक्ति की प्रतीक महिला के योगदान को भुलाकर, उनपर अत्याचार करने वाले अपराधिक प्रवृत्ति के पुरुषो के खिलाफ महिलाओं ने अपनी आवाज उठानी चाहिए. अगर महिलाएं अपने ऊपर हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज नहीं उठाएंगी तो अपराधिक प्रवृत्ति के पुरुषो का हौसला बढेगा, जिससे पीड़ित महिलाओं को अपने जीवन का खतरा बना रहेगा. अगर वे जीवित भी रहती है तो भी उनके आत्मसम्मान में चोट लगने के कारण, उनका जीवन बद से बदतर हो जाता है.
महिलाओं के आत्मसम्मान और सशक्तिकरण के लिए हाल ही में, लोकसभा और राज्य सभा में पास हुए 33% महिला आरक्षण बिल, महिलाओं के लिए लोकसभा और विधानसभा में सीटें आरक्षित कर, महिलाओं की असल समस्याओं को उजागर करने और उसके समाधान के लिए कार्य करेगा.
बहुत से लोगो को इस आरक्षण बिल “नारी शक्ति वंदन अधिनियम 2023” से परेशानी भी शुरू हो गयी है. उनका कहना है कि इससे पुरुषो की सीटें बाधित होंगी. इस पर मेरा व्यक्तिगत विचार यह है कि न्याय के मंदिर संसद भवन में लोकसभा, राज्यसभा तथा विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण, बहुत ही सराहनीय कदम है. न्याय के मंदिर संसद भवन में उन्ही राजनितिक पुरुषो और महिलाओं का प्रवेश होना चाहिए, जिनमे अपने देश और नागरिको के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा हो, उनमे त्याग की भावना कूट कर भरी हो. यहां किसी का भी पद हमेशा के लिए स्थायी नहीं होता है.
जिस तरह से हमारे फौजी भाई देश के लिए अपना जीवन न्योछावर करने से बिल्कुल भी नहीं डरते हैं और हमे एक सुरक्षित जीवन देने का कार्य करते हैं. उसी तरह राजनीति में ईमानदार और देश के लिए अपना जीवन न्योछावर करने वाले राजनेताओं की आवश्यकता है. जिस तरह से हमारे डिफेन्स सिस्टम में ईमानदार और कर्मठ लोगो का प्रवेश है. उसी तरह से राजनीति में भी ईमानदार और कर्मठ लोगो का प्रवेश होना चाहिए, जो कि मुश्किल जरुर है, मगर नागरिको के ईमानदार मताधिकार के प्रयोग से असंभव नही.
1930 में पहली बार संसद में महिला आरक्षण की बात को उठाया गया. महिलाओं के लिए कोटा बनाने के प्रयास 1990 के दशक के मध्य से चल रहे थे. मार्च 2010 में, राज्यसभा ने संविधान संशोधन (108वां) विधेयक पारित किया, लेकिन तब यह कानून लोकसभा में पारित नहीं हो सका. यह सब राजनीतिक कारणों से अटका रहा था.
लोकसभा में पास हुआ महिला आरक्षण बिल 2024 के चुनावों के बाद ही लागू हो सकेगा क्यूंकि इसके लिए परिसिमन और जनगणना की जरूरत है और इसमें कम से कम दो साल का वक्त लगेगा. हमे न्याय के मंदिर, संसद भवन और विधांसभाओ में प्रवेश करने वाले सांसदों और विधायको का, उनकी ईमानदारी, त्याग की भावना और योग्यता के आधार पर ही अपने मताधिकार के प्रयोग से चयन करना होगा.